शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

10.01.2016 लगन


आदमी के दिल पर उस बात का भूत सवार होना चाहिए, उसकी प्राप्ति के बगैर और कुछ सूझना नहीं चाहिए, ना ही सोचना चाहिए।
     जंगल में अपनी कुटिया में रहने वाले गुरु को बहुत सारी सिद्धियां प्राप्त थीं। सुख समृद्धि और सफलता प्राप्ति करने के लिए उनके पास लोगों का तांता लगा रहता था। गुरु भी अपने शिष्यों को बड़ी लगन से पढ़ाते थे। एक बार एक नौजवान सफलता का राज़ जानने के लिए उनके पास पहुंचा, उसे लगा ऐसे सिद्धि प्राप्त गुरु से सुखी और समृद्ध जीवन का गुरुमंत्र मिलता है तो उसकी ज़िन्दगी सुधर जाएगी। उनसे दीक्षा लेकर रोज आने जाने लगा। एक उसने बड़ी नम्रता से गुरु जी से परमात्मा प्राप्ति की याचना की। उसकी तीव्र इच्छा देखकर गुरु ने उससे कहा कि वह ज़रुर उसे परमात्मा प्राप्ति का रहस्य बताएंगे पर आज नहीं, कल। कल वो नदी में सुबह नहाने जाने वाले हैं, वहां नदी किनारे आना।
     नौजवान बड़ी उम्मीद के साथ दूसरे दिन नदी किनारे जा पहुंचा। देखा तो गुरु जी बड़े मज़े से नदी में नहा रहे थे। जैसे ही गुरु की नज़र नौजवान पर पड़ी उन्होंने उसको पानी के अंदर उतरने के लिए कहा। गुरु की आज्ञा सुनते ही नौजवान आहिस्ता आहिस्ता पानी काटता हुआ गुरु के पास जाने लगा। हर बढ़ते कदम के साथ पानी का गहरापन महसूस हो रहा था। जब नौजवान गुरु के पास पहुंचा, तो पानी उसके गले तक पहुंच चुका था। गुरु ने बड़े प्यार से अपना सीधा हाथ नौजवान के सिर पर रखा। नौजवान को लगा जैसे गुरु उसे आशीर्वाद दे रहे है। वह बड़ा ही खुश हुआ। नौजवान जब खुशी के ख्यालो मेंं डूबा था, उसी वक्त गुरु ने हाथ का जोर बढ़ाते हुए नौजवान को पानी में दबोचा और डुबोया।
     इन अचानक घटना से नौजवान हक्का-बक्का रह गया। वह पानी के बाहर सिर निकालने के लिए तड़पने लगा। लेकिन जब भी नौजवान पानी से बाहर सिर निकालने की कोशिश करता, गुरु उसे फिर अंदर ढकेल देते। ऐसा थोड़ी देर चला। लेकिन जब गुरु को लगा कि जब नौजवान पानी के नीचे नहीं रह सकता तब उन्होने सिर पर का हाथ हल्के से निकाल लिया। नौजवान ने हड़बड़ाते हुए सिर पानी से बाहर निकाला। सिर बाहर निकलते ही सबसे पहले उसने गहरी सांस ली। डर के मारे उसका चेहरा नीला पीला पड़ गया था। अब वह गुस्से से लाल हो गया। चिल्लाकर उसने कहा, "शिक्षा देने का यह कौन-सा अजीब तरीका है? मैं तो शिक्षा लेने आया था। आपने तो मुझे सजा दे दी। मैं तो ज़िन्दगी बनाने आया था। आप तो मेरी ज़िन्दगी मिटाने को निकले थे। ये क्या मामला है?''
     गुरु ने नौजवान को बिना रोके-टोके उसकी सारी बातें सुनी और शांत स्वर में उसे कहा "बाकी बातें छोड़ दे। मुझे सिर्फ एक ही बात सच-सच बता दे। तू जब पानी के अंदर था, तब तुझे सबसे ज़्यादा किस बात की इच्छा हुई?' नौजवान ने बिना विलंब कहा," मेरे प्राण मुंह से निकलने को थे। मुझे प्राण-वायु चाहिए थी। सांस लेने के लिए मेरी जान तड़प रही थी। मैं बाकी सब भूल गया था। मैने सोचा शिक्षा गई जहन्नुम मे। जान बची तो लाखों पाए।
        गुरु ने कहा, "जितना तू सांस के लिए तड़पा, उतना ही प्रयास तू अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए करेगा, तो ज़िंदगी में जो चाहेगा वो पाएगा क्योंकि तीव्र इच्छा, दिल में लगी आग यानी प्रबल इच्छा ही सफलता का रहस्य है।' जब ऐसी ही तड़प तुम्हें परमात्मा को पाने की पैदा होगी तभी तुम उस परमात्मा को भी पा सकते हो। संकल्प पूर्ण हो, तो क्षण में भी ध्यान घटता है और संकल्पहीन चित्त जन्मों जन्मों तक भी भटक सकता है।

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