शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

11.01.2016 अपमान

एक सूफी फकीर एक गांव में गया। लोगों ने उसका अपमान करने के लिए जूतों की माला बनाकर पहना दी। वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने माला को बड़े आनंद से सम्भाल लिया। लोग बड़े हैरान हुए, क्योंकि वे आशा कर रहे थे कि वह नाराज़ होगा, गाली देगा, झगड़ा खड़ा करेगा, इच्छा ही यह थी कि झगड़ा खड़ा हो जाए। बड़े झुक-झुककर उसने नमस्कार किया। और जैसे कि फूलों की माला हो, गुलाब पहनाए हों। आखिर एक आदमी से न रहा गया। उसने पूछा, "मामला क्या है?' तुम्हें होश है? यह जूतों की माला है।' उस फकीर ने कहा,"माला है, यही क्या कम है? जूतों की फिक्र तुम करो, हम माला की फिक्र कर रहे हैं, और करोगे भी क्या तुम? फूल तुम लाओगे कहां से? यह कोई मालियों की बस्ती तो है नहीं; पहचान गए हम इस बस्ती को। मगर धन्यभाग कि तुम माला तो लाए। इसे सम्हाल कर रखूंगा। फूलों की तो बहुत मालाएं देखीं, और जल्दी मुरझा जाती हैं। यह अनूठी है। मुरझायेगी भी नहीं। तुमने अपने संबंध में सब-कुछ कह दिया।'
     तुम अगर अंहकार से भरे हुये नहीं हो, अहंकार की ग्रंथि भीतर नहीं, तो तुम्हारा कोई अपमान नहीं किया जा सकता। जूतों की माला मे भी माला दिखाई पड़ने लगेगी। अभी तो फूलों की माला में भी फूल दिखाई नहीं पड़ते।

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