शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

14.01.2016 सेहत का राज


बादशाह ने बीरबल से पूछा-ये साहूकार किस चक्की का आटा खाते हैं? जो इतने मोटे-ताज़े होते हैं। बीरबल बोला-जहांपनाह! ये लोग जो खाते हैं, वह आप नहीं खा सकते। बादशाह ने फिर पूछा-बीरबल! बताओ तो सही ये क्या खाते हैं? बीरबल ने कहा-मौका आने पर बताऊँगा। एक दिन बादशाह और बीरबल हाथी पर बैठकर शहर में घूमने निकले। बाज़ार में पहुंचे, एक सेठ की दुकान पर भिखारियों की जमात मांगने के लिए आई। एक आने की भीख मांगी, सेठ बोला-एक पैसा दूंगा। भिखारियों ने कहा-एक आना लिए बिना हरगिज़ नहीं जाएंगे। सेठ ने सोचा, बादशाह की सवारी आ रही है। ये लोग मगज़पच्ची कर रहे हैं, यह सोचकर उसने बला टालते हुए कहा-लो एक आना, एक ढीठ भिखारी ने कहा, अब हम नहीं लेंगे, दो आना लेकर जाएंगे, बीरबल ने बादशाह को सेठ की दुकान पर हो रहे तमाशे की ओर संकेत किया। सेठ ने हालात की नज़ाकत को समझते हुए दो आने  दे दिए। इतने में तीसरा भिखारी चिल्लाया-आपने हमारा अमूल्य समय नष्ट किया। अब हम दो आना नहीं, चार आना लेंगे। सेठ ने देखा, बादशाह की सवारी बहुत नज़दीक आ गई। ये पागल लोग दुकान से हट नहीं रहे हैं, इसी खींचातानी व उधेड़बुन में सेठ दुःखी हो गया, आखिर मांगते-मांगते वे लोग एक रुपया लेकर रवाना हुए, जाते-जाते झल्लाते हुए एक भिखारी ने सेठ के मुंह पर थप्पड़ मारा, धक्का-मुक्की में सेठ की पगड़ी नीचे गिर पड़ी, बादशाह बिल्कुल नज़दीक पहुँच गए। सेठ जल्दी से अपनी पगड़ी बाँधकर दुकान पर बैठ गया। चेहरे पर तनिक भी विषाद की रेखा नहीं आने दी। वही मुस्कुराहट, वही उल्लास, मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। बीरबल और बादशाह सब कुछ निहार रहे थे। सेठ ने सवारी को एकदम दुकान के पास देखा। मुस्कराते हुए बादशाह को सलाम किया। सवारी आगे बढ़ गई। बीरबल बोला, जहांपनाह, देखा आपने अनूठा तांडव, मांगने वाले रुपए भी ले गए और सेठ को थप्पड़ भी जमा गए। सेठ जी का इतना अपमान होते हुए भी उन्होने गुस्सा नहीं किया। कितनी खामोशी रखी। आपने पूछा कि यह साहूकार लोग क्या खाते हैं। हुज़ूर ये लोग गम खाते हैं, इसीलिए मोटे-ताज़े रहते हैं, क्या ऐसा गम आप खा सकते हैं? बादशाह बोला-बीरबल! ऐसा गम मैं नहीं खा सकता, थोड़े से अपमान पर भी मुझे क्रोध आ जाता है, बीरबल ने हँसते हुए जवाब दिया-इसीलिए आप दुबले-पतले हैं।

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