शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

15.01.2016 जिसके हम मालिक हैं, वह भी हमारा मालिक हो जाता है।


बाबा फरीद साहिब एक रास्ते से गुज़र रहे थे। अपने शिष्यों के साथ और एक आदमी एक गाय के गले में रस्सी बांध कर घसीटे ले जा रहा था। गाय घिसट रही थी, जा नहीं रही थी। परतंत्रता कौन चाहता है। बाबा फरीद ने घेर लिया उस आदमी को। गाय को। अपने शिष्यों से कहा, खड़े हो जाओ। एक पाठ ले लो। मैं तुमने एक सवाल पूछता हूँ, इस आदमी ने गाय को बांधा है कि गाय ने आदमी को बांधा है?'' वह आदमी जो गाय ले जा रहा था वह भी खड़ा हो गया- देखें मामला क्या है? यह तो बड़ा अजीब प्रश्न है। और फरीद जैसा ज्ञानी कर रहा है। शिष्यों ने कहा, "बात साफ है कि इस आदमी ने गाय को बांधा है। क्योंकि रस्सी इसके हाथ में है।' बाबा फरीद ने कहा, मैं दूसरा सवाल पूछता हूं, हम इस रस्सी को बीच से काट दें तो यह आदमी गाय के पीछे जाएगा कि गाय आदमी के पीछे जाएगी?' शिष्यों ने कहा,"तब ज़रा झंझट है। अगर रस्सी काट दी तो इतना तो पक्का है कि गाय तो भागने को तैयार ही खड़ी है। यह आदमी ही इसके पीछे जाएगा।' तो बाबा फरीद ने कहा, "ऊपर से दिखता है कि रस्सी गले में बंधी है गाय के, पीछे से गहरे में समझो तो आदमी के गले में बंधी है।'
     जिसके हम मालिक होते हैं, उसकी हम पर मालकियत हो जाती है। तुम धन के कारण धनी थोड़े ही होते हो, धन के गुलाम हो जाते हो। धन के कारण धनी हो जाओ तो धन में कुछ भी खराबी नहीं है, लेकिन धन के कारण कभी ही कोई धनी हो पाता है। धन के कारण तो लोग गुलाम हो जाते हैं। उनकी सारी ज़िंदगी एक ही काम में लग जाती है। जैसे तैसे तिजोरी की रक्षा। और धन को इकट्ठा करते जाना। जैसे वे इसीलिए पैदा हुए हैं।

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