मंगलवार, 12 जनवरी 2016

हानि-लाभ में सेठ की समता-16.01.2016


          सुख स्वपना दुःख बुदबुदा, दोनों है मेहमान।
          सबका आदर  कीजिये, जो भेजे भगवान।।
जिस प्रकार कुदरत के नियम केअनुसार रात्रि के पश्चात् दिन और दिन के पश्चात् रात्रि,गर्मी के पश्चात्सर्दी व सर्दी के पश्चात् गर्मी काआगमन होता है उसी प्रकार सुख के पश्चात् दुःखऔर दुःख के पश्चात् सुख का आना स्वाभाविक है। इसलिये सुख दुःख दोनों को ही प्रभु की देन समझ कर प्रसन्न रहना चाहिये। विवेकी मनुष्य दोनों ही परिस्थितियों में समान रहता हैक्योंकि वह जानता है कि दोनों ही परिस्थितियां सदैव रहने वाली
वाली नहीं है। वह न तो सुख में गर्व करता हैऔर न ही दुःख में दुःखी होता है।
    किसी नगर में एक सेठ रहता था।उसके पास लाखों की सम्पत्ति थी और भरा-पूरा परिवार था।उसे सब तरह की सुख सुविधायें थीं। फिर भी उसका मन अशान्त रहता था। जब उसकी हैरानी बहुत बढ़ गई तो वह एक सन्त के पास गया और अपना कष्ट उन्हें बताकर प्रार्थना की, कि महाराज,जैसे भी हो,मेरी अशान्ति दूर कीजिए।सन्त ने उसकी बात ध्यान से सुनी और कहा कि अमुक नगर में एक बहुत बड़ा धनिक रहता है, उसके पास जाओ,वह तुम्हें रास्ता बता देगा। सेठ ने सोचा कि सन्त उसे बहका रहे हैं। उसने सन्त से कहा,""स्वामी जी, मैं तो आपके पास बड़ी आशा लेकर आया हूँ। आप ही मेरा उद्धार कीजिये।'' सन्त ने फिर वही बात दोहरा दी। लाचार होकर सेठ उस नगर की ओर रवाना हुआ। वहाँ पहुँचकर वह देखता क्याहै कि उस धनपति का कारोबार चारोंओर फैला है।लाखों का व्यापार है और उस आदमी का चेहरा फूल की तरह खिला है।वह एक ओर बैठ गया। इतने में एक आदमी आया उसका मुँह उतरा हुआ था। बोला,""मालिक हमारा जहाज़ समुद्र में डूब गया। लाखों का नुकसान हो गया?'' उद्योगपति ने मुस्कराकर कहा,""मुनीम जी, इसमें परेशान होने की क्या बात है? व्यापार में ऐसा होता ही रहता है।''इतना कहकर वह अपने साथी से बात करने लगा। थोड़ी देर में एक दूसरा आदमी आया। बोला,""सरकार,रुई का दाम चढ़ गया है। हमें लाखों का फायदा हुआ है।'' धनिक ने कहा,""मुनीम जी, इसमें खुश होने की क्या बात है? व्यापार में ऐसा होता ही रहता है।''सेठ को अपनी समस्या का समाधान मिल गया। उस ने समझ लिया कि शान्ति का स्त्रोत वैभव में नहीं, मन की समता में है।
     इस प्रकार विवेकी मनुष्य किसी भी परिस्थिति में अपने विवेक को नहीं खोते।भौतिक सुख दुःख तो प्रारब्धाधीन न चाहने पर भी आते जाते ही रहेंगे, किन्तु विवेकी मनुष्य उनमें रमण नहीं करते। वे तो हर हाल में मुस्कराना जानते  हैं। 

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