मंगलवार, 12 जनवरी 2016

सुख-दुःख दोनों ही चप्पू चाहियें-17.01.2016


उसके रास्ते अनूठे हैं। कभी वह तुम्हें देता है और देने के द्वारा तुम्हें निर्मित करता है। और कभी ले लेता है और लेने के द्वारा तुम्हारा विकास करता है कभी ज़रूरत होती है कि तुम्हें दुःख मिले क्योंकि दुःख तुम्हें चेताता है, होश लाता है सुख में तो तुम सो जाते हो, खो जाते हो। दुःख में तुम जाग आते हो।
  एक सूफी फकीर हुआ।हसन उसका नाम था।उसके शिष्य ने एक दिन पूछा कि सुख है यह तो समझ में आता है क्योंकि परमात्मा है,वह पिता है,तो वह सुख दे रहा है, लेकिन दुःख क्यों?दुःख समझ में नहीं आता। साँयकाल नदी के पार बाग में जब जाने लगे तो शिष्य को भी नाव में साथ बिठा लिया था।हसन ने नाव चलानी शुरुकी थोड़ी दूर नाव चलायी और एक ही चप्पू से उसने नाव चलानी शुरु कर दी। वह नाव गोल गोल घूमने लगी।अगर इसी  तरह एक ही चप्पू से नाव चलायी तो हम यहीं भटकते रहेंगे। इसी किनारे पर गोल गोल घूमते रहेंगे। दूसरा चप्पू खराब है या आपका हाथ काम नहीं कर रहा?या हाथ में दर्द है तो मैं चलाऊँ।'' हसन ने कहा,""तू तो समझदार है। मैं तो समझा कि नासमझ है।''अगर सुख ही सुख होगा तो नाव वर्तुल में ही घूमती रहेगी। कहीं पहुंचती नहीं। उसको साधने के लिये विपरीत चाहिये।दो चप्पुओं से नाव चलती है।दो पैर सेआदमी चलता है। दो हाथ से जीवन चलता है। रात और दिन चाहिये।सुख और दुःख चाहिये।जन्मऔर मृत्यु चाहिये।अन्यथा नाव घूमती रहेगी। भँवर बन जायेगी। तुम कहीं पहुँचोगे ही नहीं।

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