मंगलवार, 12 जनवरी 2016

स्तुति-निन्दा दोनो पर मिट्टी डाली-19.01.2016


लाहौर में छज्जू नामक एक भक्त जी रहा करते थे, जो सर्राफ का  काम करते थे।एकदिन एक पठान उनके पास स्वर्ण-मुद्राओं से भरी एक थैली लेकर आयाऔर बोला-इसमें पूरी एक सौ स्वर्ण मुद्रायें हैं, गिन लीजिये। भक्त जी ने मुद्रायें गिनी, तो वे निन्यानवें निकली। जब भक्त जी ने पठान से कहा कि ये मुद्रायें तो एक कम सौ हैं, तो पठान एकदम क्रोध में आ गयाऔर भक्त जी के प्रतिअनुचित शब्दों का प्रयोग करते हुये उच्च स्वर में बोला-किसीदूसरे को ठगने का प्रयत्न करना।मुझको ठगना सुगम नहीं है। मैं काज़ी के सामने तुम्हारी पेशी कराऊंगा। पठान को ऊँचा बोलते सुनकर बहुत से लोग वहाँ एकत्र हो गये। पठान की बात सुनकर सभी लोग कहने लगे कि देखो!कैसा कलियुग आ गया है?बनता भक्त है, परन्तु धोखाधड़ी अभी भी नहीं छोड़ी।
     मामला काज़ी के न्यायालय में पेश हुआ। इधर पठान की स्त्री को जब इस बात का पता चला,तो उसने तुरन्त एक व्यक्ति के हाथ काज़ी को सन्देश भिजवाया कि थैली में से एक मुद्रामैने खर्च के लिये निकाली थी,परन्तु मुझे बताना याद नहीं रहा। उस व्यक्ति ने जब न्यायालय में जा कर सबके सामने यह बात बताई,तो पठान बड़ा लज्ज़ित हुआ और भक्त जी से क्षमा याचना करते हुये बोला-मैने आप जैसे नेक आदमी पर जल्दबाज़ी में मिथ्या आरोप लगाकर व्यर्थ ही आपको बदनाम करने का प्रयत्न किया। मुझसे बहुत भारी अपराध हुआ है।
     काज़ी ने निर्णय दिया-पठान ने चूँकि भक्त जी पर झूठा आरोप लगाया है, अतः भक्त जी अपने मुख से जो दण्ड कहेंगे, पठान को वही दण्ड भोगना पड़ेगा। काज़ी का निर्णय सुनकर भक्त जी ने कहा-यहाँ उपस्थित सभी लोग पठान को शाबाशी दें, क्योंकि उसने भरी सभा में अपना अपराध स्वीकार किया है। यह सुनकर वही लोग जो कुछ देर पहले भक्त जी को ठग और धोखेबाज़ कह रहे थे, उनकी प्रशंसा करने लगे। भक्त जी ने दोनों मुट्ठियों में धूल भरकर बारी-बारी से फेंकते हुये  कहा-एक मुट्ठी निंदा पर और एक स्तुति पर। मुझे न अपनी निंदा सुन कर दुःख हुआ और न स्तुति अथवा प्रशंसा सुनकर खुशी, क्योंकि मेरा अन्तर्यामी प्रभु सब कुछ देखता है। वही सत-असत का निर्णय करेगा और मनुष्य को उसके कर्मानुसार फल भोगना पड़ेगा।
    इसीलिये सन्तों सतपुरुषों का उपदेश है कि निंदा सुनकर न तो क्रोध करो और न ही प्रशंसा सुनकर प्रसन्न होओ, क्योंकि प्रभु के दरबार में निर्णय लोगों के कहने सुनने के आधार पर नहीं होगा, प्रत्युत मनुष्य के अपने कर्मों के आधार पर होगा। जो मनुष्य स्तुति-निंदा से अप्रभावित रहता है, उसे सत्पुरुषों ने मुक्त पुरुष कहा हैः-
          उसतति निंदिआ नाहिं जिहि कंचन लोह समानि।
          कहु नानक सुनि रे मना मुकति ताहि तै जानि।।

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