मंगलवार, 12 जनवरी 2016

भाई कन्हैया-20.01.2016


भाई कन्हैया का जीवन एक मिसाल है। वह दशम गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज का अनन्य प्रेमी था। वह राग-द्वेष की भावना से कितना ऊपर उठ चुका था, यह निम्नलिखित प्रसंग से स्पष्ट हो जाता है।एक समय की बात है,श्री गुरुगोबिन्द सिंह जी महाराज तथा औरंगज़ेब की सेनाओं में परस्पुर युद्ध चल रहा था। भाई कन्हैया युद्धक्षेत्र में घूमकर बिना पक्ष-विपक्ष का विचार किये घायल सैनिकों को पानी पिलाया करता था। उसे ऐसा करते देखकर कुछ सिखों ने श्री गुरु महाराज जीके चरणों में भाई कन्हैया की शिकायत करते हुए निवनेदन किया-""सच्चे पादशाह! भाई कन्हैया युद्धभूमि में घूम फिर कर अपने पक्ष के घायल सैनिकों के साथ साथ शत्रु पक्ष के घायल सैनिकों को भी पानी पिलाता है और उन्हें होश में लाने का प्रयत्न करता है। उसे ऐसा करने से मना कीजिये कि वह शत्रुओं को पानी न पिलाये।''
     भाई कन्हैया भक्ति की किस मंज़िल पर पहुँचा हुआ है,यद्यपि श्री गुरुमहाराज जी इस बात को भलीभाँति जानते थे, परन्तु भक्त की महिमा को प्रकट करने के लिए उन्होने भाई कन्हैया को उसी समय बुलवाया और सबके सामने फरमाया,"'भाई कन्हैया! तुम्हारी शिकायत आई है कि तुम अपनी सेना के घायल सैनिकों के साथ साथ शत्रु दल के घायल सैनिकों को भी पानी पिलाते हो।''भाई कन्हैया ने हाथ जोड़कर विनय की,""सच्चे पादशाह! मैं मित्र-शत्रु अथवा अपना-पराया नहीं जानता। मुझे तो सब में आपका ही रूप नज़र आता है। जिस समय मैं घायल सैनिकों को पानी पिलाता हूँ, उस समय मुझे ऐसा अनुभव होता है कि आपको प्यास लगी है और सेवक आपको पानी पिलाने की सेवा कर रहा है।'' उसका यह उत्तर सुनकर सभी चकित रह गए।तब श्रीगुरुमहाराजजी ने फरमाया,""भाई कन्हैया!भक्ति की दृष्टि से तुमअत्यन्त उच्च अवस्था को प्राप्त कर चुके हो, क्योंकि तुम्हारी दृष्टि में सकल सृष्टि इष्टरूप हो चुकी है,और तुम्हारी दृष्टि में मित्र-शत्रु अथवा अपना-पराया नहीं रहा,फिर किससे राग और किससे द्वेष? इसलिये हमारी आज्ञा है कि अभी तक तो तुम घायल सैनिकों को केवल पानी ही पिलाया करते थे। परन्तु अब पानी पिलाने के साथ साथ उनकी मरहम-पट्टी भी किया करो।''

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