मंगलवार, 12 जनवरी 2016

सेवक कवड़ी ककड़ी भी खा गया-21.01.2016


जब तुम दुःखी हो,तो आसपास ज़िम्मेवारी किसी के कंधे पर टांग देते हो। और जब तुम सुखी हो तब तुम खुद मानते हो,कि मेरा ही कारण मैं सुखी हूँ यह तर्क किस भाँति का है? सुखी हो तब तुम अपने कारण और दुःखी हो तब किसीऔर के  कारण। इस वजह से न तो तुम दुःख को हल कर पाते हो और न तुम सुख का राज़ खोज पाते हो। क्योंकि दोनों हालत में तुम गलत हो।न तो दूसरा ज़िम्मेवार है दुःख के लियेऔर न तुम ज़िम्मेवार सुख के लिये दोनों के पीछे परमात्मा ज़िम्मेवार है।और अगर एक ही हाथ से सुख-दुःख आ रहे हैं तो उनमें भेद क्या करना, फर्क क्या करना?
     एक मुसलमान बादशाह हुआ। उसका एक गुलाम था। गुलाम से उसका बड़ा प्रेम था, बड़ा लगाव था। वह बड़ा स्वामिभक्त था। एक दिन दोनों जंगल से गुजरते थे। एक वृक्ष में एक ही फल लगा था। सम्राट ने फल तोड़ा। जैसी उसकी आदत थी, उसने एक कली काटी और गुलाम को दी। गुलाम ने चखी और उसने कहा, मालिक, एक कली और।और गुलाम माँगता ही गया।फिर एक ही कली हाथ में बची। सम्राट ने कहा,
इतना स्वादिष्ट है?गुलाम ने झपट्टा मार कर वह एक कली भी छीनना चाही। सम्राट ने कहा, यह हद हो गई। मैने तुझे पूरा फल दे दिया, और दूसरा फल भी नहीं है। और अगर इतना स्वादिष्ट है, तो कुछ मुझे भी चखने दे। उस गुलाम ने कहा,""नहीं,स्वादिष्ट बहुत हैऔर मुझे मेरे सुख से वंचित न करें। दे दें।''लेकिन सम्राट ने चख ली। वह फल बिल्कुल ज़हर था। मीठा होना तो दूर,उसके एक टुकड़े को लीलना मुश्किल था। सम्राट ने कहा,""पागल,तू मुस्करा रहा है,और इसज़हर को तू खा गया? तूने कहा क्यों नहीं?''उस गुलाम ने कहा,""जिन हाथों से इतने सुख मिले हों और जिन हाथों से इतने स्वादिष्ट फल चखे हैं, एक कड़ुवे फल की शिकायत?'' फलों का हिसाब ही छोड़ दिया, हाथ का हिसाब है। जिस दिन तुम देख पाओगे कि परमात्मा के हाथों से दुःख भी मिलता है, उस दिन तुम उसे दुःख कैसे कहोगे?तुम उसे दुःख कह पाते हो अभी,क्योंकि तुम हाथ को नहीं देख रहे हो।जिसदिन तुम देख पाओगे सुख भी उसका दुःख भी उसका,सुख-दुःख दोनों का रूप खो जायेगा। न सुख सुख जैसा लगेगा, न दुःख,दुःख जैसा लगेगा।और जिसदिन सुख-दुःख एक हो जाते हैं उसी दिनआनन्द की घटना घटती है।जब तुम्हें सुख-दुःख का द्वैत नहीं रहा जाता तबअद्वैत उतरता है।तबआनन्द उतरता है। तब तुम आनन्दित  हो जाओगे। किसी को,पड़ोस में पति को, पत्नी को, मित्र को, भाई को, दोस्त को दुश्मन को दोषी मत ठहराना। सब दोषों का मालिक वह है। और जब खुशी आये, सफलता मिले, तो अपने अहंकार को मत भरना। सब सफलताओं सब स्वादिष्ट फलों का मालिक भी वही है। अगर तुम सब उसी पर छोड़ दो,तो सब खो जायेगा सिर्फआनन्द शेष रह जाता है।
उसके हुक्म से कोई ऊँचा कोई नीचा,हुक्म से सुख-दुःख की प्राप्ति,हुक्म से ही कोई प्रसाद को उपलब्ध होता हुक्म से ही कोई आवागमन में भटकता है। सभी कोई हुक्म के अन्दर हैं। हुक्म से बाहर कभी कोई नहीं। श्री गुरु नानकदेव जी कहते हैं जो उस हुक्म को समझ लेता है वह अहंकार से मुक्त हो जाते हैं। परम आनन्द को प्राप्त कर लेते हैं।

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