शनिवार, 23 जनवरी 2016

निजी सम्पत्ति


शिकार के लिए जंगल में भटकते ईरान के शहंशाह अब्बास ने स्वच्छंदतापूर्वक बांसुरी बजाने वाले एक चरवाहे बालक को देखा। बालक की हाज़िरजवाबी और प्रतिभा का वह कायल हो गया। बादशाह उसे शाही दरबार में ले आया। उस बालक का नाम मुहम्मद अली बेग था। थोड़े दिनों में वह दरबार की शोभा बढ़ाने लगा। शाह ने उसे खजांची बना दिया। अब्बास के बाद उसका नाबालिग पौत्र शाह सफी तख़्त पर बैठा। धूर्त लोगों ने शाह के कान भरे कि शाही खजांची मुहम्मद अली बेग खज़ाने का दुरुपयोग करता है। नया शाह चाल में आ गया। उसने मुहम्मद अली की हवेली का निरीक्षण किया। हवेली में चारों ओर सादगी का साम्राज्य दिख रहा था। शाह जब लौटने लगा तभी चुगलखोरों के इशारे पर उसका ध्यान एक कमरे की ओर गया। कमरे पर तीन मजबूत ताले लटक रहे थे। इसमें छुपा रखी हैं शाही खज़ाने की बेशकीमती चीज़ें, दूसरे चुगलखोर ने कहा। जब शाह ने मुहम्मद अली से पूछा तो वह सिर झुकाकर बोला-हुज़ूर, इसमें मेरी निजी सम्पत्ति है। गुस्से से शाह ने कहा-लेकिन शासक को किसी की भी निजी सम्पत्ति देखने का अधिकार है। शाह की निगाहें मुहम्मद पर केंद्रित हो गर्इं। बेशक परवरदिगार! लेकिन शासन को उसे छीनने का हक नहीं है। मुहम्मद अली ने सर झुकाकर कहा। हम उसे देखें तो सही। शाह के हुक्म पर ताले खोल दिए गए। कमरे के बीचों बीच एक तख्त पर कुछ चीज़ें करीने से रखीं थीं। एक बांसुरी, सुराही, बाजरे का भात रखने की थैली, लाठी, चरवाहे की पोशाक और दो मोटे-ऊनी कंबल वहां रखे थे। मुहम्मद बोला-यही है मेरी निजी सम्पत्ति हुज़ूर। आपके दादा मरहूम शाह मुझे लाए थे तब मेरे पास यही चीज़ें थीं। आज भी मेरी निजी कहने को यही चीज़ें हैं। शाह को समझ में आ गया कि मुहम्मद अली इमानदार आदमी है। झूठे लोगों ने उस पर झूठे इल्ज़ाम लगाए हैं।

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