रविवार, 24 जनवरी 2016

जो मांगना छोड़ देता है, वही परमात्मा में प्रेवश करता है


ऐसा हुआ कि रामकृष्ण के पास जब विवेकानंद आए, तो उनके घर की हालत बड़ी बुरी थी। पिता मर गए थे, कोई संपत्ति तो छोड़ नहीं गए थे, उल्टा कर्ज छोड़ गए थे और विवेकानंद जी को कुछ भी न सूझता था कि कर्ज़ कैसे चुके? घर में खाने को रोटी भी नहीं थी। और ऐसा अवसर हो जाता था कि घर में इतना थोड़ा-बहुत अन्न जुट पाता, कि मां और बेटे दोनों थे, तो एक का ही भोजन हो सकता था। वो विवेकानंद जी मां को कहकर कि मैं आज घर पर भोजन नहीं लूंगा, किसी मित्र के घर निमंत्रण है, मां भोजन कर ले, इसलिए घर से बाहर चले जाते। कहीं भी गली-कूचों में चक्कर लगाकर-कोई मित्र का निमंत्रण नहीं होता-वापस खुशी से लौट आते कि बहुत अच्छा भोजन मिला, ताकि मां भोजन कर ले। स्वामी रामकृष्ण जी को पता लग गया तो उन्होंने कहा, तू भी पागल है, तू जाकर मां काली से क्यों नहीं मांग लेता? तू रोज़ यहां आता है, जा मंदिर में और मां से मांग ले, क्या तुझे चाहिए? स्वामी रामकृष्ण जी ने कहा तो विवेकानंद जी को जाना पड़ा। स्वामी रामकृष्ण बाहर बैठे रहे, आधी घड़ी बीती। एक घड़ी बीती, घंटा बीतने लगा। तब उन्होंने भीतर झांककर देखा, विवेकानंद आँख बंद किए खड़े हैं। आँख से आनन्द के आँसूं बह रहे हैं। सारे शरीर में रोमांच है। फिर जब विवेकानंद जी बाहर आए, तो स्वामी रामकृष्ण जी ने कहा, मांग लिया मां से? विवेकानंद जी ने कहा, वह तो मैं भूल ही गया। जो मिला है, वह इतना ज्यादा है कि मैं तो सिर्फ अनुग्रह के आनंद में डूब गया। अब दोबारा जब जाऊंगा, तब मांग लूंगा। दूसरे दिन भी यही हुआ। तीसरे दिन भी यही हुआ। स्वामी रामकृष्ण जी ने कहा, पागल, तू मांगता क्यों नहीं है? तो विवेकानंद जी ने कहा, कि आप नाहक ही मेरी परीक्षा ले रहे हैं। भीतर जाता हूं, तो यह भूल ही जाता हूं कि वे क्षुद्र ज़रुरतें, जो मुझे घेरे हैं, वे भी हैं, उनका कोई अस्तित्व है। जब मां के सामने होता हूं, तो विराट के सामने होता हूं, तो क्षुद्र की सारी बात भूल जाती है। यह मुझसे नहीं हो सकेगा। स्वामी रामकृष्ण ने अपने शिष्यों से कहा कि इसीलिए इसे भेजता था, कि अगर इसकी प्रार्थना अभी भी मांग बन सकती है, तो इसे प्रार्थना की कला नहीं आई। अगर यह अब भी मांग सकता है प्रार्थना में, तो इसका मन संसार में ही उलझा है, परमात्मा की तरफ उठा नहीं है। आप पूछते हैं कि क्या मांगे? मांगें मत। मांग संसार है और जो मांगना छोड़ देता है, वही केवल परमात्मा में प्रेवश करता है।

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