बुधवार, 27 जनवरी 2016

दूध का दूध पानी का पानी


     एक दिन वचन हुये कि देहात से एक गूजरी मथुरा में दूध बेचने आती थी।उसका नियम था कि तीन पाव दूध में पाव भर पानी मिलाकर बेचती थी।एकदिन दूध के सोलह रुपये उसके पास बटुए में रखे थे कि वह यमुना-स्नान को गईऔर कपड़ेआदि घाट पर रखकर स्नान करने लगी। एक बन्दर ने अवसर पाकर उसके बटुए को उठा लिया और पेड़ की शाखा पर जो यमुना की ओर बढ़ी हुई थी, जा बैठा।स्त्री यह देखकर रोने-चिल्लाने लगी। उसकी आवाज़ सुनकर बहुत से लोग एकत्र हो गये औरउन्होने बन्दर से बटुआ प्राप्त करने का बहुत प्रयत्न किया,परन्तु सब व्यर्थ। बन्दर ने बटुआ खोलकर उसमें से एक रुपया निकाला और बहुत
देरतक उसको देखकर यमुना जी में पटक दिया,फिर दूसरा निकालाऔर उसको भी देखभाल कर यमुना जी में पटक दिया।इसी प्रकार चार रूपये पानी में पटक कर फिर बटुआ घाट पर डालकर किसी ओर चल दिया।
     उस समय गूज़री ने बटुआ उठाकरअत्यन्त खेदपूर्वक कहा-दूध का दूध और पानी का पानी हो गया। जब लोंगों ने इस विषय में उससे पूछा तो उसने स्पष्ट कह दिया कि जितना मैं पानी मिलाती थी, उसके मूल्य का रूपया बन्दर ने पानी में डाल दिया। अब मुझे खेद है कि मैने पानी मिला कर व्यर्थ ही परेशानी उठाई। गूज़री ने उस दिन से दूध में पानी न मिलाने की सौगन्ध खाईऔर उस दिन से यह कहावत प्रसिद्ध हो गई कि  ""दूध का दूध पानी का पानी, गूज़री बेचकर पछतानी।''
     अभिप्राय यह कि प्रत्येक कर्म का फल एक दिन सामने आ जाता है। शुभ कर्म का फल शुभ और अशुभ कर्म का फल अशुभ ही होता है। इसलिये मनुष्य को पहले से ही सोच समझकर अपने कर्मों पर दृष्टि रखनी चाहिये ताकि बाद में पश्चाताप न करना पड़े। मालिक के दरबार में तो एक दिन पूरा-पूरा न्याय होता है। वहां दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाता है।

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