शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

किसी को सुख नहीं दिया जा सकता


  एक सूफी फकीर जुन्नैद हुआ।वह कहता था,किसी को ज़बरदस्ती सुख नहीं दिया जा सकता। किसी को ज़बरदस्ती शान्ति नहीं दी जा सकती। मैं भी राज़ी हूँ। बहुत लोगों को मैने भी कोशिश करके देख ली कि ज़बरदस्ती भी दे दो।असंभव है।तुम जितना देने की ज़बरदस्ती करोगे, उतना आदमी चौंककर भागता है,कि कोई खतरा है। आनन्द भी नहीं दे सकते किसी को। क्योंकि कोई लेने को राज़ी ही नहीं है। तो एक दिन एक भक्त ने कहा कि यह बात मैं मान ही नहीं सकता। तो हम एक प्रयोग करें। वह एक आदमी को लाया और उसने कहा कि यह आदमी बिल्कुल दीन दरिद्र है। और सम्राट आपके भक्त हैं। आप उनसे कहें कि इसको एक करोड़ स्वर्ण अशर्फियाँ दे दें। फिर हम देखें कि कैसे यह आदमी दीन-दरिद्र रहता है।कैसे दुःखी रहता है।जुन्नेद ने कहा कि ठीक। एक दिन प्रयोग किया गया,और एक करोड़ अशर्फियाँ एक बहुत बड़े मटके में भर कर एक नदी के पुल के बीच में रख दी गयीं। पुल पर आवागमन बन्द किया गया। और वह आदमी रोज़ शाम को टहलने उस पुल पर से निकलता था,ठीक उस वक्त आवागमन बन्द किया गया।भरा हुआ मटकाअशर्फियों का रख दिया बीच पुल पर,कोई नहीं हैऔर दूसरी तरफ सम्राट, जुन्नेद और उसके साथी, जो प्रयोग कर रहे थे, वे चुपचाप खड़े हो गये। तो कोई अड़चन नहीं है इस आदमी को। कोई पुलिस नहीं है,कोई जनता नहीं है,पुल खाली है। पुल पर मटका रखा हुआ है। स्वर्ण की अशर्फियाँ चमक रही हैं सूरज की धूप में और वह आदमी चला आ रहा है उस तरफ से।पर बड़ी हैरानी की बात है। वह आदमी मटकी के पास से गुज़र गया और दूसरी तरफ आ गया। उसने मटकी को न तो देखा,और न छुआ। जुन्नेद और उसके साथियों ने उसे पकड़ा और कहा कि तुम्हें मटकी दिखायी नहीं पड़ी।उसने कहा कि कैसी मटकी?जब मैं पुल पर आया तब मुझे ख्याल उठा कि आज पुल पर कोई भी नहीं है कई दिन से ख्याल उठता था लेकिन कर नही  सकता था आज प्रयोग कर लूँ। कई दिन से सोचता था कि आँख बन्द कर के पुल पार कर सकता हूँ कि नहीं। लेकिन भीड़-भाड़ रहती थी,कभी कर नहीं पाया। आज सन्नाटा देखकर ख्याल आया कि आज कर लेना चाहिए। तो मैं आँख बन्द करके गुज़र रहा था। कैसी मटकी? किस मटकी की  बात कर रहे हो?और प्रयोग सफल रहा। आँख बन्द किए पुल पार किया जा सकता है। जुन्नेद ने कहा, यह देखो,जिसे चूकना है वह कोई ख्याल पैदा कर लेगाऔर चूक जाएगा जो चूकने के लिए ही तैयार है, तुम उसे बचा न सकोगे। परमात्मा भी तुम्हें वह नहीं दे सकता जिसे लेने के लिए तुम तैयार नहीं हो गये हो।तुम अगर दुःख के लिए तैयार हो,दुःख तुम अगर सुख के लिए तैयार हो,स्वर्ग,सुख। तुम वही पाते हो जो तुम्हारी तैयारी है। मिलता उसकी अनुकम्पा से है।पाते तुमअपनी तैयारी से हो। बरसता वह सदा है। भरते तुम तभी हो, जब तुम तैयार होते हो,उन्मुख हो।

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