शनिवार, 30 जनवरी 2016

लकड़हारा जिसने चन्दन के कोयले बनाये


     एक राजा एक दिन वन में शिकार करता हुआ अपने साथियों से अलग हो गयाऔर मार्ग भूल गया।मार्ग की खोज में भटकते भटकते वह बहुत थक गया।इधर भूख-प्यास ने भी उसे बहुत परेशान किया। थका-मांदा एक पेड़ के नीचे पड़ रहा। अकस्मात एक लकड़हारे ने,जो निकट ही लकड़ियाँ काट रहा था,उसे देखा।उसने राजा को रूखा-सूखा भोजन, जो उसके पास था, खाने को दिया और निकट के एक जल रुाोत से शीतल जल लाकर उसे पिलाया।खा-पीकर राजा की जान में जान आई। तत्पश्चात वह लकड़हारा राजा को वन के बाहर तक छोड़नेआया। राजा ने उससे पूछा-तुम क्या काम करते हो? उसने उत्तर दिया-मैं लकड़हारा हूँ,लकड़ियाँ काटकर उनके कोयले बनाता हूँऔर उन्हें बाज़ार में बेचकर जो कुछ प्राप्त हो जाता है, उससे अपना जीवन-निर्वाह करता हूँ। राजा ने उसकी दयनीय दशा पर तरस खाकर चन्दन का एक बाग उसके नाम करते हुये कहा-मैं चन्दन का एक बहुत बड़ा बाग तुम्हें पुरस्कार में देता हूँ। उसे पाकर तुम मालामाल हो जाओगे।
     राजा केआदेशानुसार लकड़हारे को चन्दन का एक बहुत बड़ा बाग दे दिया गया। लकड़हारा चन्दन का इतना बड़ा बाग पाकर ह्मदय में अति प्रसन्न हुआ।चन्दन की लकड़ी की परख तो उसे थी नहीं,न ही वह चन्दन का मूल्य जानता था,वह तो एक दीन लकड़हारा था। चन्दन का बाग प्राप्त कर वह मन ही मन सोचने लगा कि राजा ने मुझपर अत्यन्त दया की है।अब मुझे कोयलों के लिये लकड़ी खोजने कहीं दूर न जाना पड़ेगा यह बाग भी बड़ा विशाल है,अतःबहुत समय तक काम देगा। यह विचार कर वह चन्दन की लकड़ी काट-काटकर कोयले बनाने और पहले की तरह ही बाज़ार में बेचने लगा।इस प्रकार काफी समय बीत गया।
   एक दिन राजा शिकार करते हुये फिर उसी वन कीओर जा निकला। उस वन में जाने पर उसे उस लकड़हारे का ध्यान हो आया। राजा ने सोचा चन्दन के बाग की ओर चलकर देखना चाहिये कि लकड़हारे ने अब तक उस बाग से क्या लाभ उठाया है? उसका विचार यह था कि लकड़हाराअब तक धनवान हो गया होगा और खूब ठाठ-बाठ से जीवन व्यतीत कर रहा होगा। किन्तु वहां जाने पर राजा को बड़ी निराशा हुआ। क्या देखता है कि बाग में कुछ इने-गिने पेड़ बचे हैं। एक किनारे पर लकड़हारे का टूटा-फूटा झोंपड़ा है। एक स्थान पर कोयलों का एक ढेर रखा हुआ है और लकड़हारा फटे-पुराने कपड़े पहने कोयलों को बोरे में भर रहा है। उस इस प्रकार फटेहाल देखकर राजा ने उसे अपने निकट बुलाया और पूछा-हमने तो तुम्हें चन्दन का बाग दिया था ताकि तुम चन्दन की लकड़ी बेचकर धनवान बन जाओ, परन्तु तुम तो उसी प्रकार दीन दिखाई दे रहे हो,यह क्या बात है?
     लकड़हारे ने हाथ जोड़कर विनय की-महाराज की जय हो। आपने मुझ दीन पर अत्यन्त कृपा की है जो मुझे यह बाग दिया है। अब मुझे लकड़ी लाने के लिये कहीं अन्यत्र जाना नहीं पड़ता। इस बाग में काफी लकड़ी है,मैं काटकर और उनके कोयले बनाकर बाज़ार में बेचआता हूँ। इससे मुझे काफीआराम हो गया है। राजा को उसकी अज्ञानता पर बहुत खेद हुआ। राजा ने कहा-अरे नासमझ!यह तूने क्या किया,चन्दन की लकड़ी के कोयले बना डाले?तुझे चन्दन की लकड़ी का मूल्य ज्ञात नहीं,इसीलिये तूने इतनी हानि कर ली। खैर!जो कुछ हुआ सो हुआ।अब ऐसा कर कि किसी पेड़ की एक छोटी टहनी काटकर ले आ।आदेश की देर थी कि लकड़हारा एक छोटी टहनी काटकर ले आया और राजा के सामने रख दी।राजा ने उसे नगर के एक इत्र बेचने वाले का नाम बताते हुए कहा-उसके पास जा और इसका जो मूल्य वह दे, उसे ले आ।
     लकड़हारा उस लकड़ी को गंधी के पास ले गया।गंधी ने उस थोड़ी सी लकड़ी के बदले उसे बहुत से रुपये दिये। अब तो लकड़हारे को चन्दन का मुल्य ज्ञात हुआ और वह अपनी अज्ञानता पर खेद करते हुये कहने लगा कि हाय!मैने इतनी मुल्यवान लकड़ी के कोयले बना-बनाकर उसे यूंही नष्ट कर दिये।किन्तु अब रोने और पछताने से क्या होता था? तब राजा ने उसे समझाया,कि जो कुछ हुआ सो हुआ, अब जो पेड़ शेष बचे हैं उन्हें बेचकर लाभ उठा।
     यदि ध्यानपूर्वक विचार किया जाये तो इस कथा में जिज्ञासु के लिये बहुत ही शिक्षाप्रद सामग्री विद्यमान है। परमात्मा ने जीव पर अति कृपा कर उसे मनुष्य जीवन रूपी चन्दन का बाग प्रदान किया है,जिसका एक-एक स्वांस अत्यन्त मूल्यवान है।आम संसारी मनुष्य अज्ञान वश इन स्वांसों को सांसारिक भोगों में व्यय करके उन्हें नष्ट कर रहा है। चन्दन की लकड़ी का मूल्य तो स्वांसो की तुलना में कुछ भी नहीं है। सन्तों ने तो एक-एक स्वांस का मुल्य त्रैलोकी की सम्पदा के तुल्य बतलाया है, अतएव ऐसी अमूल्य निधि को परमात्मा की प्राप्ति की अपेक्षा विषय विकारों और भोगों मे लुटा देना कहाँ की बुद्धिमत्ता है?

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