सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

वाणी का चमत्कार


प्रसिद्ध है कि ज़ुबान की मार बुरी होती है और यह बात बिल्कुल सच्ची भी है।यह भी कहा जाता है कि तलवार का घाव तो भर सकता है मगर ज़ुबान का किया हुआ घाव कभी नहीं भरता,अथवा यदि भरता भी है तो बहुत कम। क्योंकि ज़ुबान से कही हुई बात तीर का दर्ज़ा रखती है और वह दिल में बिल्कुल तीर ही की तरह उतर जाती है।इसलिये यह सन्तों की खास हिदायत है कि कभीभूलकर भी बुरी बात ज़ुबान से न निकाली जाये। दूसरों का दिल दुखाने वाली बात कहने से सुनने वालों का दिल तो दुखता ही है,साथ हीअपने दिल में भी बुराई और गुस्सा घर कर जाते हैं। इसकेअतिरिक्त पीठ पीछे दूसरों की बुराईऔर निन्दा करना,औरों की चुगलीखाना तथा व्यर्थ ही झूठमूठ की बातें बनाना-ये सब भी बुरी आदतें हैं। ये सभी बहुत नुकसान करने वाली हैं।जहाँ तक बन पड़े,इनसे दूर ही दूर रहना चाहिये। कभी हँसी-मज़ाक में भी झूठ बोलना या बनाकर बात कहना नुकसान का कारण हो सकता है।यही हँसी-खेल में ही दूसरों के लिये बुरी बात कहना दसरों के दिलों को घायल कर सकता है और उसका नतीज़ा अति भयानक भी हो सकता है। ऐसा करने से हमेशा परहेज़ करो।जो बात भी कही जाये, सोच विचाकर और सँभलकर कही जाये। तुम्हारी ज़ुबान ही तुम्हारी असलियत को ज़ाहिर करने वाली है। जो बात तुम्हारे मुख से निकलती है, उसमें तुम्हारी आदत, स्वभाव और प्रकृति की सूरत झलकती दिखाई देती है। तथा दूसरे लोग उसी से ही तुम्हारी हालत का अंदाज़ा लगायेंगे, जो कि आमतौर पर गलत नहीं हो सकता। सन्तों का यह कथन है।
   ता मर्द सखुन नगुफता बाशद। ऐब-ो-हुनरश निहुफता बाशद।
   हर बेशा गुमाँ मबर कि खाली-स्त। शायद कि पिलंग खुफता बाशद।
अर्थः-""जबतक आदमी मुँह से कोई बात नहीं कहता, उसके गुण-औगुण दूसरों की दृष्टि से छुपे रहते हैं।लेकिन ज्योंही वह कुछ कहने लगता है कि उसका वास्तविक रूप ज़ुबान के रास्ते निकल कर दूसरों के सामने आ जाता है। इसलिये ए इन्सान!प्रत्येक जंगल के बारे में यह ख्याल मत कर कि यह खाली होगा। तुझे क्या मालूम कि शायद उसमें कोई चीता सोया पड़ा हो और तू न जानता हो।तथा वही तेरे छेड़ने से जाग पड़ेऔर नुकसान पहुँचावे।''
    बात तो वही होती है,उसके कहने के ढंग में अन्तर आ जाने से वही नुकसान का ज़रीया भी बन सकती हैऔर वही फायदा भी पहुँचा सकती है। अकलमंद और समझदार इन्सान हमेंशा सोच विचार कर बात कहे हैं। जिससे कि न दूसरों का दिल दुःखी हो और न किसी को नुकसान पहुँचे। लेकिन ज़रा भी सोच समझकर बात न कहने से और बे-समझी के कारण बड़े बड़े नुकसान भी हो जाते हैं। महाभारत की भारी लड़ाई केवल एक छोटी सी बात पर लड़ी गई थी, जिसमें लाखों करोड़ों जानों का नुकसान हुआ। वह बात फकत इतनी थी कि हँसी हँसी में पाण्डवों की महारानी द्रोपदी ने कौरवों के राजा दुर्योधन को अंधे पिता का पुत्र होने का ताना दिया था। जिस पर क्रोध में आकर दुर्योधन युद्ध के लिये तैयार हो गया और नतीजा को तौर पर सारे भारतवर्ष में खून की वह नदी बह निकली, जिसकी मिसाल इतिहास में और नहीं मिलती।
     एक छोटा सा दृष्टान्त शैख सादी साहिब ने भी इसी बात पर दिया है। किसी राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके मुख से सब दाँत झड़ चुके हैं। सुबह को जब राज दरबार में आया, तो अपने दरबार के नजूमियों से इस स्वप्न का फल पूछा।राजा के दरबार दो अच्छे ज्योतिषि थे। एक वहाँ उपस्थित था,दूसरा ज्योतिषि घर पर था।जो वहाँ उपस्थित था, उसने ज्योतिष का हिसाब लगाकर बतलाया,""महाराज!इस स्वप्न का फल यह है किआपके परिवार के जन रानियाँ,बाल-बच्चे सम्बन्धी बन्धु-मित्र आदि सबके सब आपकी आँखों के सामने मर जावेंगे।''ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को सख्त गुस्साआ गया।उसने हुकुम दिया कि इस गुस्ताख ज्योतिषी को इसीसमय हाथी के पाँव तले कुचलने को डाल दिया जावे। ऐसा ही किया गया।उसके बाद राजा ने दूसरे ज्योतिषी को उसके घर से बुला भेजा।यह ज्योतिषी कुछ बुद्धिमान था।उसने पहले ज्योतिषी का सब हाल सुन लिया और हिसाब लगाकर देखा, तो स्वप्न का वही फल ठीक उतरता था। परन्तु उसने समझदारी से काम लिया।जब वह राज्य-दरबार में पहुँचा और राजा ने उसके स्वप्न फल के बारे में पूछा, तो वह हाथ जोड़कर बोला,""अन्नदाता की जय हो!इस अनोखे स्वप्न का फल अति शुभ हैऔर वह यह है कि हुज़ूर की आयु बड़ी लम्बी होगी। अर्थात् हुज़ूर के परिवार के प्रियजनों,बन्धु-बाँधवों और सम्बन्धियों आदि से हुज़ूर की आयु बढ़कर निकलेगी।'' इतनी बात का सुनना था कि राजा जो क्रोध में भरा बैठा था, खुशी से भर गया।उसकी भड़कती हुई क्रोधाग्नि शीतल वचन रूपी जल के छींटों से शान्त हो गई।उसने हुकुम दिया कि इस दूसरे ज्योतिंषी को एक सजा-सजाया हाथी पुरुस्कार में दे दिया जाये। एक कवि भी राज्य दरबार में मौजूद था। उसने तुरन्त ही समय-अनुकूल दोहा पढ़ाः-     
          बात ही हाथी पाईयै, बात ही हाथी पाय।।
          बात न कीजै अटपटी, कीजै बात बनाय।।
अर्थात एक बात के कहने से तो हाथी इनाम में पाया जाता है और एक बात के कहने से हाथी के नीचे डलवाया जाता है। इसलिये विचारवान को हमेशा बात ठीक तरह बनाकर कहनी चाहिये। बे-सोची-समझी और अटपटी बात हरगिज़ नहीं कहना चाहिये। गौर किया जाये कि पहले ज्योतिषी ने जो बात कही थी, दूसरे ज्योतिषी की कही हुई बात का भी असल में वही अर्थ था, लेकिन उसने उसी आशय को कुछ इस ढंग से अदा किया कि राजा का चित्त प्रसन्न हो गया। जबकि पहले ज्योतिषी की बात उसके दिल में तीर की तरह चुभ गई। इसी से समझा जा सकता है कि बात बात के कहने में कितना बड़ा फेर पड़ सकता है और नतीजा कितना अच्छा या बुरा निकल सकता है। गाली-गलौच और निन्दा के बारे में तो खास तौर सन्तों ने सख्त हिदायत की है इनसे बचने की कोशिश करते रहना चाहिए।
          गार अँगारा क्रोध झल, निंदिया धुआँ होय।।
          इन तीनों कौ परिहरै, साध कहावै सोय।।
अर्थ:-गाली अंगारे की तरह है,क्रोध पागलपन की निशानी है और दूसरों की निन्दा आग से उठने वाले धुएं की तरह है जो कोई इन तीनों को त्याग देता है, वही सच्चा साधू कहलाता है।

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