बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

चूहे वाली पेटी खोलकर देख ली


     जो जीव मन की चालों से सावधान होकर सदैव सतगुरुदेव की आज्ञा पालन में तत्पर रहा कभी भी मन के बहकने में नहीं आया वह सौभाग्यशाली मनुष्य जीवन के वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति करके सफल मनोरथ हो जाता है।और अपने जन्म को सफल कर जाता है लेकिन मन का काम तो सदा जीव को भटकाना ही है। मन का काम ही यही है जीव को भरमाना, बहकाना धोखा देना और पथ भ्रष्ट करना।इसलिये महापुरुषों ने मन से सदा सावधान रहने के लिये उपदेश किया है।
        मन के मते न चालिये  मन पक्का यमदूत।
        ले डूबे मँझधार में जब जाय हाथ से छूट।।
    मिश्र देश में युसुफ नाम का एक भक्ति परमार्थ का जिज्ञासु रहता था। परमात्म-साक्षात्कार की उसके ह्मदय में उत्कट अभिलाषा थी। फकीरों की संगति करने से उसे ये समझ आ गई थी कि कामिल मुर्शिद की शरण में जाकर उनसे नाम दीक्षा लेकर ही परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है अतएव वह कामिल मुर्शिद की खोज में लग गया। शीघ्र ही उसे मालूम हुआ कि अमुक स्थान पर जून्नून नामक फकीर रहते हैं जो कि पूर्ण महापुरुष हैं। वह उनकी शरण में गया और नाम दीक्षा के लिये उनसे विनय की। उसकी विनय सुनकर भी जून्नून मौन रहे। उन्होंने कोई उत्तर न दिया। लेकिन युसुफ निराश न हुआ। बल्कि नित्य प्रति उनका सतसंग श्रवण करने आने लगा और सेवा करने लगा। इस प्रकार चार वर्ष व्यतीत हो गये। यद्यपि इन चार वर्षों में फकीर जुन्नून ने युसुफ से एक बार भी नहीं पूछा कि तुम क्या चाहते हो। परन्तु युसुफ महापुरुषों की मौज समझ करऔर अपने में ही कमी समझकर श्रद्धा विश्वास से सेवा करता रहा। एक दिन साहस जुटाकर उनके पावन चरणों में सर रख कर आँखों में अश्रु प्रवाहित करते हुये विनय की-ऐ मेरा कृपालु गुरुदेव मुझपर कृपा कीजिए और मुझे नाम की दीक्षा दीजिए। फकीर जुन्नून ने उसकी विनय का कोई उत्तर न दिया परन्तु युसुफ का विश्वास फिर भी न डगमगाया। सोचा शायद अभी मुझमें कोई कमी है जो मुझे नाम दीक्षा नहीं दे रहे हैं। दूसरे दिन जब वह उनके चरणों में पहुँचा और प्रणाम किया तो फकीर जून्नून ने एक छोटा सा बक्सा उसे देते हुये फरमाया यह बक्सा ले लो और नील नदी के उस पार अमुक फकीर रहते हैं उन्हें दे आओ। परन्तु सावधान बक्सा खोलना नहीं। ऐसे ही उन्हें दे देना। युसुफ आज बहुत प्रसन्न था क्योंकि आज उसके मुर्शिद ने न केवल उसके प्रति कुछ वचन फरमाये थे अपितु सेवा भी बख्शी थी। वह बक्सा लिये नदी की ओर चल दिया। परन्तु मार्ग में मन उसे धोखा देने लगा कि देखना चाहिये कि इस बक्से में क्या है?बक्से में ताला तो लगा नहीं है। कुण्डी खोलकर देख लेने में क्या हर्ज है?युसुफ ने मन की चाल से बचने की बहुत कोशिश की परन्तु मन आखिर उस पर हावी हो गया। मन का कहना मानकर उसने जैसे ही ढक्कन खोला उसमें से एक चूहा निकलकर भागा। युसुफ ने उसे पकड़ने की कोशिश की परन्तु चूहा हाथ में न आया देखते ही देखते वह झाड़ियों में गायब हो गया। युसुफ को अब अपनी गलती का एहसास हुआ। परन्तु अब क्या हो सकता था। मन में सोचने लगा कि मैंने गुरु आज्ञा का उल्लंघन करके घोर पाप किया है। खाली बक्सा लेकर नदी पार कर युसुफ उस फकीर के पास पहुँचा उन्हे प्रणाम करते हुये विनय की कि मेरे मुर्शिद ने आपके लिये यह बक्सा भेजा है और भर्राई आवाज़ में बोला कि मुझे आपसे कुछ और भी कहना है। तब तक फकीर बक्सा खोल चुका था जो अब खाली था फकीर ने कहा तुम्हें कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मैं सब कुछ समझ चुका हूँ। इस बक्से में एक चूहा था जो तुम्हारे द्वारा बक्से का ढक्कन खोलते ही भाग खड़ा हुआ। ये शब्द सुनते ही पश्चाताप के आँसूं बहाते हुये उनके चरण पकड़ लिये और अपनी भूल के लिये क्षमा मांगने लगा। फकीर ने युसुफ के ह्मदय के भावों को पढ़ते हुये कहा युसुफ, मुर्शिद तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और सेवा भावना से अति प्रसन्न हैं तुम्हें सच्ची दात बख्शने से पहले तुम्हें यह दिखलाना चाहते थे कि भक्ति मार्ग में साधक का सबसे महान शत्रु उसका अपना मन ही है जो हर समय उसे पथ भ्रष्ट करने का प्रयत्न करता रहता है। तुमने यह देख लिया कि मन ने तुम्हें कैसे भरमाया इस मन से सदा सावधान रहना तुम्हें अपने किये पर पश्चाताप है अब तुम मुर्शिद के पास जाओ। हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है अब वे तुम पर कृपा करेंगे। युसुफ उन्हें प्रणाम कर वापिस मुर्शिद के चरणों में उपस्थित हुआ और उनके चरणों में गिर पड़ा मुर्शिद ने उसे उठाया और उसे अपने ह्मदय से लगा लिया तथा भक्ति धन से मालामाल कर दिया।

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