बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

सेवक को सजा कि आराम करने दो


एक बार श्री सतगुरुदेव जी महाराज पिपल भुट्टा(झंग) में विराजमान थे और कुछ गुरुमुखों से श्री वचन फरमा रहे थे। उसी समय एक भक्त जी श्री चरणों में उपस्थित हुए और दण्डवत कर क्षमा मांगने लगे। उन्होंने नियम के विरूद्ध कोई कार्य किया था।वेअपनी भूल पर लज्जित थे और क्षमा याचना कर रहे थे।वहाँ उपस्थित भक्तों को जब यह विदित हुआकि इसने श्रीमौज तथा नियम के विरूद्धकोई कार्य किया है,इसीलिये ही क्षमा याचना कर रहा है,तो उनमें से कुछ भक्तों ने श्रीसतगुरुदेव महाराज जी के चरणों में विनय की। प्रभो! चूँकि इसने नियम के विरुद्ध कार्य किया है, इसलिये कोई न कोई दण्ड इसे अवश्य ही मिलना चाहिए जिस से कि दूसरों को शिक्षा मिले और भविष्य में कोई भी नियम के विरुद्ध कार्य न करे। करुणा के आगार श्री सतगुरुदेव महाराज जी कुछ क्षण तो मौन रहे, फिर उन भक्तों से पूछा-आप लोगों के विचार में इसे कौन सा दण्ड देना चाहिए?एक भक्त ने विनय की-प्रभो! दो दिन यह अपनी सेवा के अतिरिक्त लंगर के सब बर्तन भी साफ करे। दूसरे ने कहा-दीन दयालु जी बगीचे को पानी देने के लिए इससे सारा दिन नल चलवाया जाए। तीसरे भक्त ने विनय की-कृपासागर!इससे सारे आश्रम की सफाई करवाई जाए।
     इस प्रकार वहाँ उपस्थित आठ भक्तों ने क्रम से अपनी अपनी बुद्धि अनुसार उसके लिए दण्ड बताया। भक्तवत्सल, कृपासिन्धु श्री सदगुरुदेव महाराज जी ने उन आठों भक्तों को एकओर खड़ा करके उन्हें सम्बोधित कर फरमाया-तुम सबने अपने अपने विचार के अनुसार इस भक्त के लिए दंड निर्धारित किया। अब केवल इतना बताओ कि इस ऊँचे और सच्चे दरबार की सेवा, जो बड़े ही पुण्य प्रताप से और भाग्योदय होने पर ही मनुष्य को प्राप्त होती हैऔर जिसके लिए देवी-देवता भी तरसते हैं,क्या तुम लोगों की दृष्टि में वह सेवा दण्ड है?बस! आप सबकी बुद्धि इसी परिधि में ही सीमित है कि दरबार की सेवा को दण्डसमझ रहे हो। सदगुरु दरबार की सेवा तो अमुल्य देन होती है। इस भक्त को यदि और अधिक सेवा दी गयी, तो फिर इसे दण्ड किस बात का मिला?अधिक सेवा प्राप्त करके तो यह भक्ति के सच्चे धन से मालामाल हो जाएगा।
   श्री प्रभु कुछ पल मौन रहकर उनकी ओर निहारते रहे,पुनः फरमाया वह तो अपनी भूल पर लज्जित होकर पश्चाताप करते हुए क्षमा याचना कर रहा है। सतपुरुष तो दयाल का अवतार होते हैं। वे जीव को दण्ड देने के लिए नहीं, प्रत्युत् उसे क्षमा करने के लिए आते हैं। जो नम्रता धारणकर अपनी भूल पर पश्चाताप करते हुए क्षमा-प्रार्थी होता है, सतगुरु, उस की गलतियों की ओर ध्यान न देकर उसे क्षमा कर देते हैं। यह भक्त भी चूँकि अपनी गलती पर पश्चाताप कर रहा है, इसलिए इसे क्षमा किया जाता है। इसके स्थान पर आप सबको दण्ड दिया जाता है और जिसे सतपुरुषों के दरबार में वास्तव में ही दण्ड कहा जाता है कि आप में से प्रत्येक ने जितने समय के लिए इसे दण्ड देने का विचार प्रकट किया, वह उतने समय तक दरबार की किसी भी सेवा को हाथ न लगाये। भोजन उसे बैठे बिठाये मिल जाएगा।
     ये श्री वचन सुनते ही सबके सब श्री चरणों में गिर पड़े औरअपनी भूल के लिए क्षमा याचना  करने लगे। श्री सदगुरुदेव  महाराज  जी ने फरमाया-किसी को यदि दण्ड देना ही हो तो सतपुरुषों की दृष्टि में दण्ड वस्तुतः यही है कि उसे दरबार की सेवा से वंचित कर दिया जाए न कि उसे और अधिक सेवा प्रदान की जाए।अधिक सेवा पाकर तो वह सच्चे धन से मालामाल हो जाएगा। फिर सेवा से ही मालिक प्रसन्न होते हैं।अधिक सेवा द्वारा मालिक को प्रसन्न करके न जाने वह कितना धनाढ¬ बन जायेगा।          

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