गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

शिष्य ने पूछा चांद में दाग क्यों


एक बार सुकरात अपने शिष्यों को ज्ञान दे रहे थेऔर उनकी जिज्ञासाओं का समाधान कर रहे थे। जब वेअपनी बात समाप्त कर चुके तो उन्होंने अपने शिष्यों से कहा यदि किसी के मन में अब भी कोई संशय या प्रश्न शेष हो तो वह पूछ सकता है। यह सुनकर एक शिष्य ने जो उनके पास काफी समय से रह रहा था और अपने आप को ज्ञानवान समझने लग गया था। उसने कहा गुरुदेवआप मुझे बताईये कि चाँद में धब्बा क्यों है? और मैं यह भी जानना चाहता हूँ कि दीपक के तलेअंधेरा क्यों होता है? जब सुकरात ने इन दोनों प्रश्नो को सुना तो बहुत व्यथित हुये।दुःखी मन से कहा तुम्हें मेरे पास रहते हुए इतना समय हो गया लेकिन अभी भी तुम ज्ञान की पहली सीढ़ी पर अटके हुये हो। यह सुनकर शिष्य अत्यन्त दुःखी हुआ। उसे ऐसी किसी टिप्पणी की अपेक्षा नहीं थी। वह अपनेआपको काफी ज्ञानवान समझता था। अतः उसके अहं को ठेस पहुंची। उसने सुकरात से कहा मैं इतनेअर्से से आपसे ज्ञानअर्जित कर रहा हूँ फिर भी आपने ऐसा क्यों कहा? सुकरात ने कहा तुम्हारे सवाल से मुझे बहुत दुःख हुआ है काश कि तुमने पूछा होता कि चाँद में चाँदनी क्यों है? दीपक में इतनी रोशनी क्यों है? फिर मैं तुम्हें जीवन के अनन्त रहस्यों में से कुछ मोती चुनकर देता। फिर मैं तुम्हें बताता कि जीवन क्या होता है। जीवन का अर्थ क्या है। क्योंकि जब तुम किसी की बुराईयों पर ध्यान देते हो, बुराईयों पर चिन्तन करते हो तो जानेअन्जाने में ही उन बुराईयों के कुछ अंश अपने अन्दर उतार लेते हो।और फलस्वरूप तुम्हारेअन्दर बुराईयाँ बढ़ती जाती हैंऔर जब तुम किसी की अच्छाईयों पर ध्यान देते हो, अच्छाईयों का चिन्तन करते हो तो फिर तुम्हारे अन्दर भी अच्छाईयों में वृद्धि होने लगती है।

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