शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

कारूँ बादशाह


कारूँ बादशाह ने चालीस गंज खज़ाना एकत्र किया था वह भी सारा छोड़ कर चला गया। उस कारूँ बादशाह ने एक बार अपने वज़ीर से कहा कि हमारे पास कितना खज़ाना है हिसाब लगाकर बताओ तो वज़ीर ने हिसाब लगा कर बताया कि बादशाह सलामतआपके पास इतना धन है कि आपकी बीस पीढ़ीयाँ भी बैठ कर खाती रहें तो आपका धन खत्म न होगा। यह सुनकर राजा का चेहरा उदास हो गया।वज़ीर बादशाह का चेहरा मायूस देखकर कहने लगा इतना धन सुनकर तो आपको प्रसन्न होना चाहिये था किन्तु इसके विपरीत मैं आपके चेहरे पर दुःख और मलाल देख रहा हूँ। बादशाह ने कहा हमारी बीस पीढ़ीयों के लिये तो धन हमारे पास है लेकिन मुझे चिन्ता इस बात की है कि हमारी इक्कीसवीं पीढ़ी क्या खायेगी?वह इतना लोभी था कि कहते हैं फिर उसने नगर में मुनादी करा दी कि जिसके पास जितना भी धन है सब राजकोष में जमा करवा दे अगर किसी ने एक रूपया भी रखा तो उसे सजा दी जायेगी। राजा के भय से सभी ने अपना सारा धन राजकोष में जमा करवा दिया। राजा ने ये परखने के लिये कि कहीं किसी ने धन छुपाकर तो नहीं रख लिया एक मुनादी करा दी कि कोई एक रूपया मेरे पास लेकर आयेगा उसे आधा राज्य दिया जायेगा।एक  नव युवक नेअपनी माँ से रूपये के लिये कहा तो मां ने कहा राजा की ये चाल है राजपाट कुछ नहीं मिलेगा।जब लड़का न माना तो माँ ने कहा मेरे पास तो रूपया नहीं है तेरे पिता को दफनाते समय कब्रा में एक चाँदी का रूपया रखा गया था कब्रा खोद कर वह रूपया निकाल सकता है उस नवयुवक ने कब्रा खोद कर रूपया निकाला और राजा के पास ले गया जब राजा को
मालूम हुआ कि हमारे देश में कब्राों में बहुत सा धन, गढ़ा हुआ है तो उसने
सब कब्रों खुदवा कर चाँदीसोने के सिक्के सब निकलवा लिये इतना लोभी था उसने चालीस गँज खज़ाना इकट्ठा किया था आखिर वो भी छेकड़ गया चारे पल्लू झाड़ ऐत्थे।रावण रत चोई ऋषियाँ साधुआं दी आखिर गया लंक उजाड़ एत्थे। रावण की लंका ही सोने की थी उसकी लंका का गढ़ सारा सोने का था वह धन के लोभ में ऋषियों से कर लेने से भी न चूकालेकिन महापुरुष फरमाते हैं उसे क्या मिला आखिर अपनी सब प्रजा को मरवाकर सारी लंका भी उजाड़ गया।लंका का गढ़ सोने का भया मूर्ख रावण क्या ले गया? विश्वविजय का स्वपन देखने वाला सिकन्दर जब मरने लगा अन्तिम समय में उसने अपनी प्रजा से कहा कि मेरे दोनों हाथ जनाजे से बाहर रखना और मेरा जनाजा गली गली कूचे कूचे में फिरे ताकि लोगों को नसीहत मिल जाये कि विश्वविजेता सिकन्दर धनवानऔर बलवान होते हुये भी दोनों हाथ खाली गया है।यहाँ का धन एकत्र करने की बजाय साथ ले जाने वाला धन एकत्र करें। मुझे मालूम होता कि ये धन साथ नहीं जाता तो मैं वो धन एकत्र करता जो साथ जाता मगर अफसोस कि अब क्या हो सकता है।
इस कदर धन जमा कर लेने के बाद भी कारूँ की तृष्णा न पूरी हुई। परन्तु ऐसा पापपूर्ण मार्ग अपना कर धन एकत्र करने वाले कारूँ का परिणाम क्या हुआ।
          कारूँ हलाक शुद कि चिहलखाना गंज दाश्त।।
          नौशेरवां  न  मुर्द  कि  नामे-निको  गुज़ाश्त।।
अर्थः-कारूँ बादशाह जो धन के चालीस भण्डारों का मालिक था,बुरी तरह मारा गया।अन्ततः मरते समय रोया और पछताया। दूसरी ओर नेक बादशाह नौशेरवाँ हुआ है,जिसने प्रभु की भक्ति और दूसरों की भलाई के शुभ कर्म किए। मौत उसे भी आई, परन्तु  उसकी नेकी और सच्चाई के प्रताप से उसका नाम आज तक अमर है। ऐसे लोग मरकर भी जीवित रहते हैं।     

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