शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

गुरु-शिष्य के झोंपड़े को आँधी ने उड़ा दिया


     दो फकीर थे। दोनों वर्षाकाल के लिए अपने झोंपड़े पर वापिस लौट रहे थे। आठ महीने घूमते थे,भटकते थे गाँव-गाँव,उस परमात्मा का गीत गाते थे। वर्षाकाल में अपने झोंपड़े पर लौट आते थे।गुरु बूढ़ा था। जवान शिष्य था। जैसे ही वे करीब पहुँचे झील के किनारे अपने झोंपड़े के,देखा कि छप्पर ज़मीन पर पड़ा है।ज़ोर की आँधीआयी थी रात,आधा छप्पर उड़ गया है।छोटा सा झोंपड़ा।उसका भी आधा छप्पर उड़ गया है। वर्षा सिर पर है। अब कुछ करना भी मुश्किल होगा। दूर जंगल में निवास है। युवा सन्यासी शिष्य ने कहा,देखो,हम प्रार्थना कर करके मरेजाते हैं,और उसकी तरफ से यह फल।इसलिए तो मैं कहता हूँ कि कुछ सार नहीं है। प्रार्थना,पूजा मिलता क्या है?दुष्टों के महल साबित है, हम गरीब फकीरों की झोंपड़ी गिरा गई आँधी। यह आँधी उसी की है। जब वह क्रोध से बातें कह रहा था, तभी उसने देखा कि उसका गुरु घुटने टेक कर,बड़े आनन्दभाव सेआकाश की तरफ हाथ जोड़े बैठा है। उसकी आँखों से परम संतोष के आँसू बह रहे हैं। और वह गुनगुना कर कह रहा है,कि परमात्मा तेरी कृपा।आँधी का क्या भरोसा। पूरा ही छप्पर ले जाती। ज़रूर तूने बीच में रोका होगा, ज़रूर तूने बाधा डाली होगी।और आधा बचाया। आधा छप्पर अभी भी ऊपर है।
    फिर वे दोनों गये।एक ही झोंपड़े में वे प्रवेश कर रहे हैं लेकिन दो भिन्न तरह के लोग है। एक असंतुष्ट था,एक सन्तुष्ट। स्थिति एक है, लेकिन दोनों के भाव अलग हैं। इसलिए दोनों अलग झोंपड़ों में जा रहे हैं। ऊपर से तो दिखायी पड़ता है, कि एक ही झोंपड़े में जा रहे हैं। रात दोनों सोये। जो असंतुष्ट था,वह तो सो ही न सका। उसने नेक करवटें बदली और बार बार कहा कि क्या भरोसा कब वर्षा आ जाए।अभी वर्षा आयी नहीं। लेकिन वह चिंतित और परेशान है उसने कहा, नींद नहीं आती। नींदआ कैसे सकती है?यह कोई रहने की जगह है? लेकिन गुरु रात बड़ी गहरी नींद सोया। जब चार बजे उठा तो उसने एक गीत लिखा। क्योंकि आधे झोंपड़े में से चाँद दिखायी पड़ रहा था। और उसने लिखा कि परमात्मा अगर हमें पहले  से पता होता, तो हम तेरी आँधी को भी इतना कष्ट न देते कि आधा छप्पर अलग कर देते। हम खुद ही अलग कर देते। अब तक हम नासमझी में रहे। सो भी सकते हैं, चाँद भी देख सकते हैं। आधा छप्पर दूर जो हो गया। तेरा आकाश इतने निकट और हम उसे छप्पर से रोके रहे। तेरा चाँद इतने निकट कितनी बार आया और गया, और हम उसे छप्पर में रोके रहे। हमें पता ही न था तू माफ करना।

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