मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

सत्संग का प्रभाव


          संतन मो कउ पूँजी सउपी तउ उतरिआ मन का धोखा।
          धरमराइ अब कहा करैगो जउ फाटिओ सगलो लेखा।।
     कथा है-एक सेठ नगर में किसी काम से गया। कुछ समय पश्चात् उसे घर से सन्देश आया कि तत्काल घर लौट आओ।पत्र पढ़ते ही वह तैयार हो गया।चूँकि रात का समय था,मार्ग में वन और नदी-नाले पड़ते थे,अकेला जाने में प्राण जाने का भय था,जाना भी आवश्यक था,अतएव मज़दूर की खोज की गई,परन्तु कोई साथ चलने को तैयार न हुआ। सेठ को घर पहुँचने की शीघ्रता थी।अन्त में एक धर्मात्मा जो सन्त सत्पुरुषों का शिष्य और बहुत अभ्यासी था और साथ ही परोपकारी भी था,साथ चलने को तैयार हो गया। उसका सिद्धान्त था कि जिसका काम करता, उससे चार टके मज़दूरी लेने के अतिरिक्त एक घड़ी सत्संग सुनाया करता। इसी बहाने से वह लोगों का भला किया करता था। जब उसने सत्संग सुनने अथवा सुनाने की शर्त रखी, तो सेठ जी ने उत्तर दिया कि मैने तो आज तक सतसंग का नाम ही नहीं सुना,सम्पूर्ण आयु सांसारिक धन्धों में ही व्यस्त रहा। हाँ!आज यदि आप मुझे सत्संग सुना देंगे तो अवश्य ही सुन लूँगा।भक्त मज़दूर ने सेठ का सामान सिर पर उठा लिया औरअपनी जान जोखिम में डाल कर सेठ के साथ हो लिया तकि किसी बहाने से उसे सत्संग का लाभ प्राप्त हो जाये। इसका नाम है परोपकार।
         मार्ग में सत्संग वार्ता आरम्भ हुई और सत्संग करते करते दोनों सेठ जी के घर जा पहुँचे। घर पहुँच कर सेठ जी ने मज़दूरी देने के अतिरिक्त श्रद्धा-भावना से उऩ्हें भोजन भी करवाया। उस गुरुमुख मज़दूर ने देखा कि सेठ की आयु केवल सात दिन शेष है,अतएव कोई ऐसी युक्ति निकाली जाये जिससे इस बेचारे का उद्धार हो जाये।यह सोचकर उस सेठ को अलग बुला कर समझाया कि सेठ जी! तुम ने आज से सातवें दिन मर जाना है। मरणोंपरान्त तुमको धर्मराज के न्यायालय में उपस्थित होना होगा।वहाँतुम्हारा कर्म-विवरण देखकर तुमसे पूछा जायेगा कि सारी आयु पापकर्म करने के फलस्वरूप तुम्हें काफी समय तक नरकों मे रहना होगा,परन्तु तुमने जो एक घड़ी सत्संग किया है,उसका फल तुम्हें चार घड़ी बैकुँठ मिलेगा। बोलो! पहले कौन सा फल लेना है? सत्संग का या पापकर्मों के दण्ड भोगने का? उस समय तुम एक घड़ी सतसंग का फल पहले मांग लेना। इस बात को भली प्रकार स्मरण कर लो। सातवें दिन सेठ का देहान्त हो गया। धर्मराज के न्यायालय में उपस्थित होने और पूछने पर वह बात उसे याद आ गई। उसने सत्संग का फल पहले मांग लिया। तब यमदूतों को आदेश हुआ कि इसे चार घड़ी के लिये बैकुण्ठ भेज दो, परन्तु तुम लोगों को अऩ्दर जाने की आज्ञा नहीं है।सेठ जी चार घड़ी के लिये बैकुण्ठ में प्रविष्ट हुये,तो क्या देखते हैं कि वही सन्त जिन्होंने मज़दूर बनकर उसका सामान उठाया था,वहाँ विराजमान हैं। सेठ जी दौड़ कर उनके चरणों से लिपट गया। जब समय पूरा हो गया तो सेठ जी उठकर चलने लगे। तब सन्तों ने उससे कहा-कहां जाते हो? सेठ जी बोले-मेरा समय हो गया है और द्वार पर खड़े यमदूत मुझे घूर रहे हैं। देरी से जाऊँगा तो बहुत कष्ट देंगे। सन्तों ने आश्वासन देते हुये फरमाया-तुम भयभीत मत हो। वे तम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। यहाँ आने की उन्हें आज्ञा नहीं है। तुम यहाँ से मत जाओ।वे प्रतीक्षा करते करते थककर लौट जायेंगे।वचन मानकर सेठ जी वहां बैठे रहे। बेचारे यमदूत परेशान होकर धर्मराज के पास गये और सब वृतान्त कह सुनाया। धर्मराज ने उत्तर दिया कि मैं इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। प्रकृती की ओर से सन्त सत्पुरुषों को पूरा अधिकार है, वे जो चाहें कर सकते हैं। और जिस पर दयाल हो जायें, उसका लेखा फाड़ सकते हैं। अब उनको वहीं रहने दो।

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