शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

मेरी आँखों ने मेरी पोल खोल दी


एक बार सन्त बुल्लेशाह किसी ऐसी सभा में बैठे थे। जहां भगवच्चर्चा हो रही थी। अकस्मात उनके मुख से यह बात निकली कि यदि कहीं से पारमार्थिक भेद मेरे हाथ लग जाय,तो उसे कभी प्रकट न होने दूँ। किन्तु जब उन्हें प्रभु-कृपा से सन्त इनायतशाह साहिब की शुभ संगति प्राप्त हुई तो उनपर प्रभु-प्रेम का ऐसा गहरा रंगचढ़ा कि उनके रोम-रोम सेमालिक के नाम के स्वर गुँजरित होने लगे। एकदिन आपकी मुलाकात उसी प्रेमी से हो गई,जिससे आपने ये शब्द कहे थे कि ,""यदि मैं पारमार्थिक भेद अथवा प्रभु-प्रेम की निधि पा जाऊं तो उसे कभी प्रकट न होने दूँ।'' आपने उससे हीभगवच्चर्चा आरम्भ कर दी और खूब मस्ती में आकर प्रेमाश्रु बहाते हुये मालिक की महिमा गायन करने लगे। जब काफी समय बीत गया तो एकान्त पाकर उस व्यक्ति ने  बुल्लेशाह  को उनके शब्द स्मरण कराते हुए कहा कि आप तो कहते थे की पारमार्थिक भेद को प्रकट न होने देंगे और उसे आम लोगों से छुपा कर रखेंगे, परन्तु अब तो आप मुनादी देते फिर रहे हैं। बुल्लेशाह ने मुस्कराकर उत्तर दिया-भाई! क्या करूँ! मेरे दो शत्रुओं ने मेरी पोल खो दी ही। एक मेरी आँखों के अश्रुओं ने और दूसरे मेरी जिह्वा ने। इन दोनों ने मेरे अन्दर के आत्मिक धन की मुनादी देना आरम्भ कर दी है। अब प्रयत्न करने पर भी मैं आत्मिक धन के रत्न-जवाहर छुपा कर नहीं रख सकता। सतपुरुषों का फरमान हैः-
      ऐसा नामु रतनु निरमोलकु पुँनि पदारथ पाइआ।।
      अनक जतन करि हिरदै राखिआ रतनु न छपै छपाइआ।।

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