गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

सच्चे और झूठे की दृष्टि भिन्न भिन्न


     सूफी कहानी है। एक गाँव में एक सूफी आया। उसे किसी यात्रा पर जाना था। पहाड़ों में छिपा हुआ छोटा सा मन्दिर था, जिसकी वह तलाश कर रहा था। उस सूफी फकीर ने गाँव के लोगों से पूछा एक चायघर के सामने जाकर,कि इस गाँव में सबसे सच्चा आदमी कौन है? और सबसे झूठा आदमी कौन है?गाँव के लोगों ने बता दिया। छोटे गाँव में सभी को सभी का पता होता है,कि सबसे झूठा आदमी कौन है,सबसे
सच्चाआदमी कौन है।वह सूफी सबसे सच्चेआदमी के पास गया पहले और उसने पूछा कि मैं उस छिपे हुए मन्दिर की तरफ जाना चाहता हूं, जिसकी चर्चा शास्त्रों में सुनी है।अगर तुम्हें मार्ग पता हो तो सबसे सुगम मार्ग क्या है, वह मुझे बता दो। तो उस ने कहा,सबसे सुगम मार्ग पहाड़ों से ही हो कर जाता है। और इस-इस विधि से तुम चलो, लेकिन पहाड़ों से गुज़रना होगा।वह आदमी फिर सब से झूठे आदमी के पास गया और बड़ा हैरान हुआ। क्योंकि उस झूठे आदमी से भी उसने पूछा तो उसने कहा, कि सबसे सुगम मार्ग पहाड़ों से गुज़रता है। और यह-यह मार्ग है और तुम्हें इस इस भाँति जाना होगा।दोनों के उत्तर समान थे। तब वह बड़ा हैरान हुआ। तब उसने गाँव में जाकर तलाश की, कि यहाँ कोई सूफी तो नहीं है, कोई फकीर तो नहीं है।
    ध्यान रखना,सच्चा आदमी, झूठा आदमी दो छोर हैं। और जब कोई आदमी संतत्व को उपलब्ध होता है तो दोनों के पार होता है। अभी वह बड़ी मुश्किल में पड़ गया, कि किसकी मानूँ?और उसने सोचा था कि झूठा आदमी विपरीत बात कहेगा। लेकिन पापी, पुण्यात्मा दोनों ने एक उत्तर दिया। अब कौन सही है?तो वह एक सूफी फकीर का पता लगा कर उसके पास गया। उस फकीर ने कहा, दोनों ने एक सा उत्तर दिया है लेकिन दोनों की नज़र अलग अलग है।सच्चे आदमी ने इसलिए तुम्हें कहा कि तुम पहाड़ के ऊपर से जाओ, एक मार्ग नदी के ऊपर से जाता है, वह उसे पता है। लेकिन न तो तुम्हारे पास नाव है जिससे तुम यात्रा कर सको,और न नाव से यात्रा करने केअन्य साधन और सामग्री तुम्हारे पास है। फिर तुम्हारे पास यह गधा भी है जिसके ऊपर तुम सवार हो।
यह पहाड़ पर तो सहयोगी होगा,नाव में तो उपद्रव होगा।इसलिए तुम्हारी पूरी स्थिति को सोचकर कहा,कि तुम पहाड़ से जाओ। सुगम मार्ग तो नाव से है। लेकिन तुम्हारी स्थिति देखकर सुगम मार्ग पहाड़ से बताया गया।और झूठे आदमी ने इसलिए पहाड़ से कहा, ताकि तुम मुसीबत में पड़ों।वह तुम्हे सताना चाहता है।उत्तर एक से हैं,दृष्टि भिन्न है। कृत्य भी एक से हो सकते हैं। इसलिए कृत्यों से कुछ तय नहीं होता।अन्तर्भाव से तय होता है। समझो,तुम्हारा छोटा लड़का है, तुम उसे कभी चांटा भी मारते हो, लेकिन वह चाँटा पाप नहीं है।अगर वह प्रेम से मारा गया है, तो सृजनात्मक है। वह उस बच्चे को मिटाने के लिए नहीं,वह उस बच्चे को बनाने के लिए है।तुमने भरपूर प्रेम से मारा है।तुमने मारा हीइसलिए है,कि तुम प्रेम करते हो। प्रेम न हो तो तुम फिक्र ही नहीं करते।भाड़ में जाओ। जो करना हो करो।एक उपेक्षा होती है। लेकिन तुम प्रेम पूर्ण हो इसलिए बच्चे को हर कहीं नहीं जाने दे सकते। वह आग में गिरना चाहे तोआग में नहीं गिरने दोगे।तुम उसे रोकोगे।तुम उसे मार भी सकते हो। लेकिन उस मारने में पाप नहीं है।उस मारने में पुण्य है क्योंकि सृजन हो रहा है।तुम कुछ बनाना चाहते हो।लेकिन तुम एक दुश्मन को मारते हो। चांटा वही है,हाथ वही है,ऊर्जा वही है, लेकिन जब तुम दुश्मन के भाव से मारते हो, तो तुम कुछ बनाने को नहीं मारते। तुम कुछ मिटाने को मारते हो। पाप हो गया। कृत्य पाप नहीं होते। तुम्हारे भीतर की दृष्टि अगर विधायक है, तो कोई कृत्य पाप नहीं है। अगर तुम्हारी दृष्टि विध्वंसात्मक है तो सभी कृत्य पाप हैं।

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