शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

तीन प्रकार के मनुष्य

तीन प्रकार के मनुष्य(श्री वचन)
एक दिन वचन हुये कि मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं। उत्तम,मध्यम और कनिष्ठ। कनिष्ठ वे हैं जो विघ्न के भय से कार्य को आरम्भ ही नहीं करते, मध्यम वे हैं जो प्रारम्भ करके विघ्न को देखकर काम को छोड़ देते हैं और उत्तम वे हैं जो बार-बार विघ्न पड़ने से कार्य को आरम्भ करके बीच में नहीं छोड़ते अर्थात् उसको अवश्य पूरा करते हैं।
     एक दिन श्री वचन हुए कि अभ्यासी अथवा सत्संगी चार प्रकार के होते हैं। प्रथम वे जो पोथी में पढ़कर अथवा किसी से श्रवण करके सारी बातें कण्ठस्थ कर लेते हैं जैसे कोई वैद्यक की पुस्तकें पढ़कर अथवा मौखिक रूप से सुनकर केवल नुस्खा स्मरण कर ले,परन्तु औषधि न खाये। दूसरे,जो केवल दिखलावे के लिए दो-चार मिनट अथवा अधिक देर तक नेत्र मूँदकर बैठ जाते हैं जैसे कोईऔषधि मुँह में डालकर कुल्ला कर दे।तीसरे,जो पुरुषार्थ करकेअभ्यास करते हैं,पर कभी-कभी विषय आदि मेंआसक्त हो जाते हैं जैसे कोई दवा तो पिये,परन्तु परहेज़ न करे। चौथे,जो पुरुषार्थ,सच्ची लगन और प्रेम के साथ अभ्यास करते हैं और विषयों से सदैव बचे रहते हैं जैसे कोई दवा भी पिये और पूरा परहेज़ भी करे।इस प्रकार के मनुष्य अभ्यास का पूरा पूरा लाभ उठाते हैं।
    एक दिन श्री वचन हुए कि कान तीन प्रकार के होते हैं अर्थात् बात सुनने और उस पर आचरण करने वाले मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं। प्रथम सूप के समान जो अच्छी वस्तु को रखता है और कूड़े-करकट को फटक कर फेंक देता है। इसी तरह से इस प्रकार के मनुष्य अच्छी बात को ग्रहण करते हैं और बुरी बात को छोड़ देते हैं।
        दूसरे छलनी के समान,जो छानअर्थात् बेकार वस्तु को रखती है और उत्तम वस्तु अर्थात् आटे को नीचे गिरा देती है इस प्रकार के मनुष्य अवगुणों और बुराइयों को ग्रहण करके सार वस्तु(गुणों) की अपेक्षा कर देते हैं।
     तीसरे मूसल के समान जो अच्छे और बुरे-दोनों को इकट्ठे कूटता है,अच्छे-बुरे की अलग पहचान नहीं कर सकता इस प्रकार के मनुष्य बात को सुनकर उस पर विचार नहीं कर सकते और न ही अच्छे-बुरे को अलग-अलग कर सकते हैं। उनसे पूछने पर यह मालूम होगा कि वे
कुछ समझे ही नहीं कि यह वस्तु नित्य एवं शाश्वत् है या नश्वर एवं अस्थायी, अच्छी और काम में आने वाली है या बुरी और नरर्थक।
     उत्तम मनुष्य वे हैं जो सूप के समान अच्छे-बुरे और शुभ-अशुभ का विचार करके बुरी वस्तु अर्थात् अशुभ विचारों का त्याग करते हैं और काम में आने वाले अच्छे और शुभ विचारों को अपने ह्मदय में स्थान देते हैं।

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