शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

श्रेष्ठ श्रोता राबिया


रबिया,हज़रत हसन बसरी जी के प्रमुख शिष्यों में से थीं। राबिया भक्ति प्रेम से भरपूर थी। हज़रत हसन बसरी जब भी प्रवचन उपदेश करते तो राबिया को बिल्कुल सामने बिठाते। जिसदिन वह सतसंग में उपस्थित न होतीं तो हज़रत मौन धारण कर लेते। प्रवचन भी न फरमाते। उनके सत्संग में अत्यधिक संख्या में बड़े बड़े अमीर और उच्चपद के व्यक्ति आते। उनमें से एक ने विनय की कि क्या कारण है कि एक शिष्या की अनुपस्थिति में आप प्रवचन नहीं करते। आपने फरमाया कि जो शरबत मुझे हाथियों के मुख में डालने के लिए दिया गया है, वह चींटियों के मुँह में कैसे डालूँ। अर्थात् एक अधिकारी आत्मा लाखों से बढ़कर है।
     आपसे किसी ने पूछा कि सतसंग में इतनी भीड़ होने पर आपको खुशी होती होगी।आपने फरमाया-नहीं,यदि कोई सच्चा जिज्ञासु,भक्त और विरही आ जाता है तो खुशी होती है।इतनी भीड़ मेले की न्यार्इं है।जिसमें भक्तों का कार्य सिद्ध नहीं होता।

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