सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

इंसान दुसरों के सुख में सुख देखे.

दो आदमीयों का चिमनी मे प्रेवश
       एक यहूदी फकीर हुआ,हसीद फकीर बालसेन। एक ईसाई पादरी बालसेन के ज्ञान से प्रभावित था।यहुदी और ईसाइयों में तो बड़ी दुश्मनी थी। लेकिन बालसेन आदमी काम का था। तो कभी कभी एकांत में उस यहुदी के पास ईसाई पादरी मिलने जाता था। एक दिन ईसाई पादरी ने पूछा कि तुम यहूदियों का तर्क कैसा है?तुम सोचते किस ढंग से हो? क्योंकि तुम्हारा सोचने के मुकाबले कोई तर्क नहीं दिखायी पड़ता। तुम जिस काम में लगते हो,सफल हो जाते हो,तुम जहाँ हाथ उठाते हो,वहीं सफलता पाते हो।मिट्टी छूते हो,सोना हो जाती है।तुम्हारा क्या तर्क है? व्यवस्था क्या है तुम्हारी सोचने की।तो बालसेन ने कहा कि एक कहानी तुमसे कहता हूँ।
      दो आदमी एक मकान की चिमनी से भीतर प्रवेश किये।दोनों शुभ्र कपड़े पहने हुए थे। चिमनी धुएं से काली थी।एक आदमी बिल्कुल साफ सुथरा चिमनी के बाहर आया,ज़रा भी दाग नहीं। दूसरा आदमी कालिख से पुता हुआ बाहर निकला,एक भी जगह साफ न बची थी। तो मैं तुमसे पूछता हूँ कि इन दोनों में से कौन स्नान करेगा? तो पादरी ने कहा,यह भी कोई पूछने की बात है?क्या तुमने मुझे इतना मूढ़ समझ रखा है?जो काला हो गया,कालिख से भर गया है,वह स्नान करेगा।बालसेन ने कहा, यही यहुदी तर्क में फर्क है। जो आदमी सफेद कपड़े पहने हुए है,वह स्नान करेगा।उसने कहा,हद हो गयी।क्या मतलब-समझाओ।तो बालसेन ने कहा, जो आदमी सफेद कपड़े पहने हुए है,वह अपने मित्र की हालत देखेगा।क्योंकि दुनियाँ में हरआदमी दूसरे की हालत देख रहा है।इसलिए मैं कहता हूँ,जिसके कपड़े सफेद हैं वह स्नान करेगा,क्योंकि वह समझेगा कि कैसी गंदी हालत हो रही है, चिमनी से निकलने पर। क्योंकि लोग दूसरे को देख रहे हैंऔर वह जो आदमी काले कपड़े पहने हुए है, वह मज़े से घर चला जायेगा। क्योंकि वह देखेगा कि अरे। गज़ब की चिमनी है इतनी कालिख लेकिन निशान एक नहीं आया है। क्योंकि हर आदमी दूसरे को देख रहा है।उसी आधार पर निर्णय ले रहा है।आप देख रहे हैं दूसरे का सुख, दुखी हो रहे हैं, उसके आधार पर निर्णय ले रहे हैं। देखें दूसरे का सुख और आप सुखी होना शुरु हो जायेंगे क्योंकि तब आपको अपना दुःख नहीं दिखायी पड़ेगा।और न केवल देखें दूसरे का सुख, दूसरे के सुख में उत्सव मनायें।जो आदमी दूसरे के सुख में उत्सव मना सकता है उसको सुख के अवसर की कमी न रहेगी।उसे प्रतिपल सुख का अवसर मिल जायेगा।क्योंकिअरब लोगों के सुख, तबआपकी संपत्ति, सभी के सुख आपकी संपत्ति हो गये। अपने दुःख के प्रति कठोर, दूसरे के सुख के प्रति बहुत संवेदनशील,ऐसा जो साध लेता है वह सदा के लिये सुखी हो जाता है।
आदमी है दुःख में सुख खोजता है। जितना सुख खोजता है, उतना दुःखी होता जाता है।जब बोध जगता है कि मेरे सुख की खोज ही मेरे दुःख का कारण है तो साधना का जन्म होता है तब आदमी सुख नहीं खोजता, दुःख से नहीं बचना चाहता,सुख-दुःख दोनों से उठना चाहता है। सांसारिक आदमी है वह,जो दुःख से ऊपर उठने का रास्ता,मार्ग खोजता है। संन्यासी है वह,जो समझ गया कि दुःख से बचनेऔर सुख कोखोजने में ही दुःख है।तो सन्यासी है वह जो सुख और दुःख से ऊपर उठने का रास्ता,मार्ग खोजता है।सिद्ध है वह, जो पहुँच गया उस जगह, जहाँ सुख और दुःख के पार हो गया।सुख दुःख के पार होते ही आनन्द घटित हो जाता है। बोधिसत्व है वह, जो इस आनन्द को पाकर खो नहीं जाता, चुप नहीं हो जाता,बैठे नहीं रहता वरन् जो दुःख में हैं,उनके लिए वापिस लौट आता है।

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