गुरुवार, 10 मार्च 2016

रुपये का कुछ दे दो


एक दिन श्री वचन हुये कि एक व्यक्ति रुपया हाथ में लिये दुकान दुकान पर कहता फिरता था कि ""रुपये का कुछ दे दो।''प्रत्येक दुकानदार अपनी अपनी वस्तुओं के विषय में पूछता कि यह वस्तु दे दें अथवा वह दे दें,परन्तु वह यही कहता था कि मुझे "'कुछ दे दो''। जब दिन भर फिरते फिराते हो गया तो किसी दुकानदार ने बुलाकर कहा कि रुपया हम को दो, हम उसके बदले में तुम्हें ""कुछ'' दे देंगे।
     उस दुकानदार ने रुपया ले लिया और दस-बारह तंग मुँह की मिट्टी की हाँडियां भीतर से निकाल लाया जो सब खाली थीं, केवल एक-दो में थोड़े से दाल-कंकर आदि डाले हुये थे। पहले खाली हांडियों को बारी-बारी दिखलाकर पूछा कि देखो इनमें क्या है?वह व्यक्ति उन्हें हिला-हिलाकर देखता और कहता गया कि कुछ नहीं, कुछ नहीं। जब कई बार ऐसा हो गया तो दाल आदि वाली हांडी दिखलाकर पूछा कि देखो इसमें क्या है? उसने उत्तर दिया कि इसमे तो ""कुछ'' है।दुकानदार ने वही हांडी उस ग्राहक को देते हुये कहा कि जब इसमें ""कुछ'' है तो बस ले जाइये। ग्राहक ने जब उस हाँडी को लेकर खूब ध्यान से देखा तो ज्ञात हुआ कि उसमें दाल-कंकर आदि कुछ वस्तुयें पड़ी हुई हैं। यह देखकर उसने उस हांडी को पटक दिया और कहा कि वास्तव में यह कुछ भी कुछ नहीं।
     यह कथा सुनाकर श्री परमहंस दयाल जी ने फरमाया कि जो लोग भजन-भक्ति ,तपस्या एवं त्याग,उद्यम और पुरुषार्थ करते हैं और उनके प्रतिकार स्वरुप कुछ प्राप्त करने की कामना करते हैं, तो स्वाभाविक ही प्रत्येक उद्यमऔर पुरुषार्थ का फल तोअवश्यमेव मिलता ही है,अतः उस फल को पाकर वे लोग समझने लगते हैं कि अब उन्हें कुछ मिल गया है। किन्तु ध्यानपूर्वक देखा जाये,तो क्या कुछ मिला? यदि किसी प्रकार की सिद्धि शक्ति उसको प्राप्त हो जाती है,तो वे यह समझने लगते हैं कि उनको कुछ मिल गया है परन्तु जब भक्ति-परमार्थ के समुद्र में गोता लगाते हैं,तब उन्हें पता चलता है कि कुछ मिलना भी वास्तव में कुछ नहीं। और यदि सांसारिक मान-सम्मान और जगातिक सुख भोगोंं की प्राप्ति हो गई, तो वे भी चूँकि अनित्य और नश्वर है, इसलिये वे भी कुछ नहीं। किस फकीर ने क्या खूब कहा हैः-
          इशरते-दुनियाँ दो लहज़ा के सिवा कुछ भी नहीं।
          कालिबे-खाकी से जब निकली हवा तो कुछ भी नहीं।।
अर्थात संसार के ऐश्वर्य भोगों को नित्यता प्राप्त नहीं। शरीर से जब आत्मा निकल जाती है,तब मनुष्य से कुछ भी नहीं हो सकता।अतएव मनुष्य को चाहिये कि मालिक की भक्ति निष्काम भाव से करे ताकि उसके दोनों लोक संवर जायें अर्थात यहां भी जीवन सुख से व्यतीत हो और परलोक भी संवर जाये।

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