शुक्रवार, 11 मार्च 2016

जा को कछु न चाहिये सोई शहनशाह


एक निर्धन परिवार के घर एक लूला-लंगड़ा लड़का पैदा हुआ। उसके पिता ने एक दिन यह सोचकर कि यह लड़का तो हम पर सदैव बोझ बना रहेगा, उसे एक निर्जन स्थान पर छोड़ दिया। थोड़ी देर के पश्चात् कुछ सन्त महात्मा भगवान का भजन-कीर्तन करते हुए उधरआ निकले। लड़के के रोने की आवाज़ सुनकर उनका ध्यान उधर चला गया। क्या देखते हैं कि एक लूला-लंगड़ा लड़का रो रहा है। उसे इस निर्जन स्थान में देखकर वे समझ गए कि इसे कोई यहाँ जानबूझ कर छोड़ गया है। उनका ह्मदय दया से भर गया और वे उसे उठाकर अपने आश्रम पर ले गये। सन्तों की शुभ संगति तथा सदुपदेशों से उसके ह्मदय पर बचपन में ही भक्ति का ऐसा गहरा रंग चढ़ गया कि नाम, भक्ति तथा प्रभु प्रेम के अतिरिक्त उसकेअन्दरअन्य कोई कामना ही शेष न रही। बालक जानकर जब कभी लोग उससे पूछते कि तुम्हारे मनमें यदि किसी वस्तु की इच्छा हो तो बताओ,तो वह उन्हें यही उत्तर देता कि मुझे कुछ नहीं चाहिये।
     एक बार भ्रमण करते हुए देवर्षि नारद जी उधरआ निकले। लोगों के मुख से उस लड़के की प्रशंसा सुनकर कि वह सर्वथा कामना रहित हो गया है, नारद जी के मन में उसे देखने की इच्छा उत्पन्न हुई। उस लड़के से मिलने पर नारद जी उसके भक्तिपूर्ण विचारों से अत्यन्त प्रभावित हुए और उसे वरदान माँगने को कहा। लड़के ने सदैव की तरह उत्तर दिया-मुझे किसी वस्तु की इच्छा नहीं है। नारद जी ने बार बार आग्रह किया, परन्तु लड़के ने हर बार यही उत्तर दिया कि मुझे किसी वस्तु की इच्छा नहीं है। नारद जी ने देवलोक में जाकर सबके सम्मुख उस लड़के की भक्ति एवं निष्कामता की अत्यन्त  सराहना की। सुनकर इन्द्र को भी बड़ा आश्चर्य हुआ। वह देवताओं सहित वहाँ आया और बोला,मैं इन्द्र हूँऔर ये सब देवगण हैं। हम तेरे शरीर भी सर्वांग-सम्पन्न कर सकते है,ऋद्धि सिद्धि भी दे सकते हैं। तथा इनके अतिरिक्त यदि कुछ और चाहो, तो वह भी दे सकते हैं। आज तुम जो चाहो हमसे मांग लो,हम तुमसे अति प्रसन्न हैं।लड़के ने अपना वही उत्तर दोहरा दिया-मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।
     इन्द्र ने कहा- कुछ न कुछ तो तुम्हें मांगना ही पड़ेगा। लड़के ने उत्तर दिया-यदि आप लोगों की यही इच्छा है कि मैं कुछ न कुछ आप लोगों से अवश्य मांगूँ,तो फिर मैं यह माँगता हूँ कि आप लोग पुनः मुझे दर्शन देने की कृपा न करें।यह उत्तर सुनकर वे समझ गये कि नाम भक्ति के प्रताप से लड़के का ह्मदय पूरी तरह कामना रहित हो गया है। इसका परिणाम यह हुआ कि वे उसका शरीर भी ठीक कर गये और उसे ऋद्धियाँ सिद्धियाँ भी दे गये।
    यह सन्तों की विशेषता है कि वे मनुष्य को भक्ति की दात बख्शकर उसे (अकाम) बना देते हैं। उन जैसा जीव का हितैषी तथा परोपकारी संसार में अन्य नहीं है।

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