शनिवार, 12 मार्च 2016

वासना

सिकंदर अफलातून का शिष्य था।अफलातून से वह दर्शन सीखता था। लेकिन सिकंदर था सम्राटऔर अफलातून एक गरीब दार्शनिक था। एक दिन सिकंदर ने उससेकहा कि तुम घोड़ा बन जाओ,और मैं तुम्हारे ऊपर सवारी करना चाहता हूँ। तो अफलातून को उसने घोड़ा बना दिया, जैसे बच्चे बना लेते हैंऔरअफलातून पर सवारी की।उसके दस-पांच दरबारी जो मौजूद थे, उनको उसने कहा देखो ज्ञानी की दशा। यह ज्ञानी मुझे सिखाने चला है।तो अफलातून ने कहा कि मेरी ही वासनाओं की वजह से यह मेरी दशा है,जो तुम्हारा घोड़ा बना हूँ। मैं तुम्हें ज्ञान सिखाकर भी सौदा ही कर रहा हूँ, उससे भी मैं कुछ पाना ही चाहता हूँ। वह पाने की चाह ही इस हालत में ले आयी कि तुम मेरे सिर पर बैठ गये हो। मेरी चाह ने ही मुझे घोड़ा बना दिया, तुमने नहीं। तुम क्या कर सकते हो? मेरीवासना ने ही मुझे नीचे गिराया है,तुम मुझे नीचे नहीं गिरा सकते हो।
   इस जगत में जो भीआपकी दशा है,वह आपकी ही वासना के कारण है। वासना का अर्थ है, जो मिला है उससे हम तृप्त नहीं। जो है उससे हम तृप्त नहीं। हम अस्तित्व से कहते हैं कि इतना काफी नहीं,यह और चाहिए यह और चाहिए। अस्तित्व से हमारी मांग है कि हम तृप्त होंगे तब, जब यह सब हो जाये। अस्तित्व ने जो दिया है, उससे हम राजी नहीं।और अस्तित्व ने सब दिया है। जीवन दिया है और जीवन केअनूठे रहस्य दिये हैं और जीवन का परमानन्द छिपा रखा है भीतर आपके। लेकिन वह खुलेगा तब जब आप राजी हो जायें अस्तित्व से।आपको तो उसे देखने की फुरसत ही नहीं कि अस्तित्व ने क्या दिया। आप तो माँग
किये जा रहे हैं, कि ये दो वो दो, इस देने की माँग में वह छिप ही गया है,जो दिया ही हुआ है और आपको पता नहीं, जो आप मांग रहे हैं, वह कुछ भी नहीं है।जो आपको मिला ही हुआ है, उसके सामने जो आप मांग रहे हैं वह कुछ भी नहीं।

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