बुधवार, 16 मार्च 2016

मर्दाना बकरा बना दिया गया


एक समय का वृत्तान्त है कि जब मर्दाना श्री गुरुनानक साहिब के साथ जा रहा था तो मार्ग में एक सजधज का नगर देखकर उसकी चाह हुई कि मैं घूम फिर कर इस की शोभा देख लूँ उसने श्री गुरुमहाराज जी से विनय की-परन्तु उऩ्होंने यह कह कर रोक दिया कि,""ऐ मर्दाना! इस बाहर की बनावट को न देख यह जादूगरों की नगरी है।परन्तु मर्दाने के मन ने नहीं माना उसने पुनः अनुरोध किया कि भगवन!मुझे आप थोड़े समय के लिये आज्ञा दे दें।मैं शीघ्र ही वापिस लौट आऊँगा। गुरुमहाराज जी ने कहा जैसी तुम्हारी इच्छा। (नोट-) हम भी कई अवसरों पर ऐसी आज्ञा लेते हैं कि अपना निर्णय  तो पहले  सुना देते हैं। परन्तु मुख से कहते हैं कि "' गुरु महाराज जी!आज्ञा दीजिये- यह आज्ञा नहीं होती।'' मर्दाना नगरी में घूमने चला गया। पहली ही गली में जादूगर ने उसे गले में धागा बाँध कर भेडू बना दियाऔर खूंटे से बाँध दिया। मर्दाने को कुछ देर तक लौटे हुए न देखकर श्री गुरुनानकदेव जी स्वयं नगर में प्रविष्ट हुए।मार्ग में मर्दाने ने गुरु जी को देखा और अपनी बोली में  चिल्लाया-गुरुमहाराज जी जान गये कि यही मर्दाना है। उन्होने उसके गले से जादू का धागा खोल कर उसे फिर से मर्दाना बना दिया। मर्दाना उनके चरणों में गिर पड़ा और लगा पश्चाताप करने और क्षमा माँगने।
     ऐसे ही यह संसार एक इन्द्रजाल का देश है। सन्त सतगुरु तो बार बार पुकार कर कहते हैं कि इसमें कमलपत्र की तरह ऊपर ऊपर रहो। परन्तु जो मनुष्य उनके वचनों की अवहेलना करके अपनी इच्छानुसार जगत के भीतर प्रवेश कर जाता है उसके गले में आशाओं के पाश पड़ जाते हैं और वह नर से पशु बन जाता है भगवान को भूल कर मैं मैं और मेरी मेरी करने लगता है। जिससे काल और माया का फंदा उसके गले में पड़ा रहता हैऔर जीव सदा दुःखी रहता है।सच्चे सुख से वंचित हो जाता है। जो सतपुरुषों की शरण में आ जाते हैं उनकी आज्ञानुसार जीवन की सब कार्यवाही करते हैं वे काल और माया के बन्धन से मुक्त होकर सच्चे सुख को प्राप्त करके अपना जीवन सफल कर जाते हैं।

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