गुरुवार, 17 मार्च 2016

सिकन्दर का अमृत कुण्ड तक पहुँचना


     सिकंदर उस जल की तलाश में था जिसे पीने से लोग अमर हो जाते हैं। बड़ी प्रसिद्ध कहानी है उसके सम्बन्ध में। अमृत की तलाश में था। कहते हैं कि दुनियाँ भर को जीतने का उसने जो आयोजन किया,द्म वह भी अमृत की तलाश के लिए। और कहानी है कि आखिर उसने वह जगह पा ली। वह उस गुफा में प्रवेश कर गया जहाँ अमृत का झरना है। आनन्दित हो गया।जन्मों जन्मों की जीवन की आकांक्षा की तृप्ति का क्षण आ गया। सामने  कल-कल नाद करता हुआ झरना है,इसी गुफा की तलाश थी। झुका ही था कि अंजलि में भर ले अमृत को और पी जाए, अमर हो जाए, कि एक कौवा बैठा हुआ था गुफा के भीतर। वह ज़ोर से बोला, ""ठहर,रुक। यह भूल मत करना।''सिकंदर ने कौवे की तरफ देखा। बड़ी दुर्गति की अवस्था में था कौवा। पहचानना मुश्किल था कि कौवा है, पंख झड़ गये थे, आँखें अन्धी हो गयीं थीं। ऐसा जीर्ण-शीर्ण उसने कौवा ही नहीं देखा था। बस, कंकाल था। सिकंदर ने पूछा रोकने का कारण? और रोकने वाला तू कौन? कौवे ने कहा, मेरी कहानी सुन लो। मैं भी अमृत की तलाश में था और यह गुफा मुझे भी मिल गयी थी, और मैने यह अमृत पी लिया। और अब मैं मर नहीं सकता। और अब मैं मरना चाहता हूँ। देखो मेरी हालत। आँखेंअन्धी हो गयी हैं, देह ज़राजीर्ण हो गयी है, पंख झड़ गये हैं, उड़ नहीं सकता, पैर गिर गये हैं, गल गये है, लेकिन मर नहीं सकता। एक बार मेरी तरफ देख लो। फिर तुम्हारी मर्ज़ी हो, तो अमृत पी लो। लेकिन अब में चिल्ला रहा हूं, चीख रहा हूं, कि कोई मुझे मार डाले, लेकिन मारा नहीं जा सकता। जी भी नहीं सकता क्योंकि जीने के सब उपकरण क्षीण हुए जा रहे हैं और मर भी नहीं सकता क्योंकि यह अमृत दिक्कत हो गया है। और अब प्रार्थना एक ही कर रहा हूँ परमात्मा से कि मुझे मार डालों, मुझे मार डालों। बस एक ही आकाँक्षा है किसी तरह मर जाऊं अब मर नहीं सकता। रूक जाओ, सोच लो एक दफा, फिर तुम्हारी मर्ज़ी।और कहते है सिकंदर सोचता रहा, और चुपचाप गुफा से बाहर वापिस लौट आया। उसने अमृत पिया नहीं।
     कौव्वा कौन था?मन था जिसके कहने पर आकर उसने गुरुदेव के वचनों पर विश्वास न रहा और मन रुपी कौव्वे के बहकावे में आकर अमृत पीने से वंचित रह गया। और दूसरी बात इस कथा में ये कि, तुम
जो भी चाहते हो अगर वह पूरा हो जाए तो भी तुम मुश्किल में पड़ोगे अगर वह पूरा न हो तो तुम मुश्किल में पड़ते हो। तुम मरना नहीं चाहते। अगर यह हो जाए, गुफा तुम्हें मिल जाए और तुम अमृत पी लो, तो तुम मुश्किल में पड़ोंगे। क्योंकि तब तुम पाओगे अब जी कर क्या करें?और जब जीवन तुम्हारे हाथ में था, जब तुम जी सकते थे, तब तुम आकांक्षा करते थे कि अमृत मिल जाए क्योंकि जब मृत्यु है, तो जियें कैसे?न मृत्यु के साथ जी सकते हो,न अमृत के साथ जी सकते हो। न गरीबी में जी सकते हो,न अमीरी में जी सकते हो। न नर्क में,न स्वर्ग में।और फिर भी तुम अपने को बुद्धिमान समझते हो।आदमी बिल्कुल बद्धिहीन है वह जो भी माँगता है उसी के जाल में भटकता है अगर पूरा हो जाता है, तो मुश्किल खड़ी हो जाती है।पूरा नहीं होता, तो मुश्किल खड़ी होती है। तुम सोच कर देखो, अतीत में लौटो अपनी ज़िन्दगी का एक दफा लेखा-जोखा करो। तुमने जो माँगा, उसमें से कुछ पूरा हुआ है उससे तुम्हें सुख मिला?तुमने जो माँगा उसमें से कुछ पूरा नहीं हुआ है, उससे तुम्हें सुख मिला?तुम दोनों हालत में दुःख पा रहे हो। जो माँगा है उससे उलझ गये, जो मिला है उससे उलझ गये जो नहीं मिला उससे उलझे हुए हो। बुद्धमानी क्या है? बुद्धिमत्ता का लक्षण क्या है? उस सूत्र को माँग लेना जिसे माँग लेने से फिर दुःख नहीं होता। इसलिए धार्मिक व्यक्ति के अतिरिक्त कोई बुद्धिमान नहीं है। क्योंकि परमात्मा को माँगने वाला ही पछताता नहीं। बाकी तुम जो भी माँगोगे, पछताओगे। इसे तुम गाँठ बाँध कर रख लो तुम जो भी माँगोगे,पछताओगे। सिर्फ परमात्मा को माँगने वाला कभी नहीं पछताता।
उससे कम में काम भी नहीं चलेगा। वही जीवन का गंतव्य है।

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