शुक्रवार, 18 मार्च 2016

मौत को सदा याद रखो


एक युवक एक सन्त जी के पास आता था।एक दिन उसने उनसे प्रश्न किया कि आपका जीवन ऐसा निर्मल है आपके जीवन की धारा ऐसी निर्दोष है कि कहीं कोई मलिनता नहीं दिखाई देती।आपका जीवन इतना पवित्र है, आपके जीवन में इतनी सात्विकता है इतनी शान्ति है लेकिन मेरा मन में यह प्रश्न उठता है कि कहीं यह सब ऊपर ही ऊपर तो नहीं, कहीं ऐसा तो नहीं कि भीतर मन में विकार भी चलते हों मन में वासनायें भी चलती हों भीतर पाप भी चलता हो भीतर अपिवत्रता, बुरार्इंया हों भीतरअन्धकार हो,अशान्ति हो,चिन्ता हो ऊपर से आपने सब व्यवस्था कर रखी हो। क्योकि मुझे भरोसा नहीं आता कि अदमी इतना शुद्ध कैसे हो सकता है मैने आपको सब तरफ से देखा और परखा है कहीं कोई भूल दिखाई नहीं पड़ती। हो सकता है मेरी खोज की सामथ्र्य आपकी छिपाने की सामथ्र्य से कम होगी ऐसा सन्देह मन में होता है कि आप में कहीं न कहीं भूल होनी चाहिए।
       सन्त जी ने कहा कि तुम्हारा प्रश्न का उत्तर तो मैं बाद में दूँगा। कई दिन से एक बात मैं तुझे कहना चाहता था लेकिन कह नहीं पाता था। वह ये कि कई दफे तेरा हाथ पर नज़र गई लेकिन में सोचता था अभी तो देर हैअभी क्यों तुझे मरने से पहले मार देना। लेकिन अब देर नहीं है अब सत्य को छिपाना उचित नहीं है। कल सुबह सूरज उगने के साथ ही तेरा अन्त हो जायेगा। इधर सूरज उगेगा, उधर तेरा सूरज डूब जायेगा। तेरी मौत की घड़ी करीब आ गई है।यह हमारा तुम्हारा आखरी मिलन है। अब मै तुझे कह के निश्चिन्त हुआ। तुझसे कह के मेरा बोझ हलका हो गया।अब तू पूछ क्या पूछना है?वह युवक प्रश्न पूछना भूल गया। जब अपनी मौत आ गई तो किस में दोष हैं किसमें दोष नहीं हैं किसको क्या प्रयोजन है? वह उठकर खड़ा हो गया उसने कहा कि मुझे अभी कोई प्रश्न नहीं सूझता।मुझे अब घर जाने दें। सन्त ने कहा।रूको भी इतनी जल्दी क्या है। कल सुबह कोअभी काफी देर है अभी तो दिन पड़ा है रात पड़ी है चौबीस घन्टे लगेंगे इतनी घबड़ाने की कोई ज़रूरत नहीं हैअपना प्रश्न तो पूछते जाओ फिर मैं उत्तर दे न पाऊंगा। क्योंकि कल तुम विदा हो जाओगे। युवक ने कहा रखो अपना उत्तर अपने पास मुझे कोई प्रश्न नहीं पूछना मुझे घर जाने दो।हाथ पैर उसके काँपने लगे। आया था  तो शरीर में  बल था जवानी थी लेकिन लौटते समय दीवार का सहारा लेकर चलने लगा।अचानक स्वास्थ्य खो गया।घर जाकर बिस्तर पर लग गया घर के लोगों ने कहा क्या हुआ है आज?कोई बिमारी है, कोई दुःख है कोई पीड़ा है,कोई चिन्ता है? उस युवक ने कहा न कोई बिमारी है न कोई दुःख लेकिन सब गया चिन्ता है भीतर एक कँपकपी है कल मर जाना है फकीर ने कहा है कि उम्र की रेखा कट गई है। घर के लोग रोने लगे। मोहल्ले पड़ोस के लोग एकत्र हो गये। वह युवक बुझी बुझी हालत में था। अब गया तब गया। तभी फकीर ने द्वार पर दस्तक दी कहा रोओ मत। मुझे भीतर आने दो।चुप हो जाओ।उस युवक को हिलाया कहाआँखें खोल उसने आँखें खोलीं। फकीर ने कहा तेरे सवाल का जवाब देने आया हूँ युवक ने कहा जवाब माँगता कौन है?फकीर ने कहा जो मैने यह तेरे हाथ की रेखा की बात कही है वह तेरा सवाल का जवाब है अभी तेरी मौत आई नहीं है। वह युवक यह सुनकर उठकर बैठ गया-तो मौत नहीं आ रही है ?फकीर ने कहा यह मज़ाक था सिर्फयह बताने को कि अगर मौत आती है तो आदमी के जीवन में पाप खो जाता है।चौबीस घन्टे में कोई पाप किया? किसी को दुःख पहुँचाया?किसी से झगड़ा किया?उस युवक ने कहा-दुःख की बात करते हैं। दुश्मनों से क्षमा माँग ली। सिवाय प्रार्थना के इन चौबीस घन्टों में कुछ नहीं किया। फकीर ने कहा जो पवित्रता मेरे जीवन में दिखाई देती है वह मौत के बोध के कारण है। तुझे चौबीस घन्टे बाद मौत दिखाई पड़ी मुझेचौबीस साल बाद दिखाई पड़ती है इससे क्या फर्क पड़ता है मौत सत्तर दिन बाद आयेगी कि सत्तर साल बाद आयेगी। जो आ रही है वहआ ही गई है।इस बोध ने मेरे जीवन को बदल दिया है।
मृत्यु का बोध जीवन को रूपान्तरित करता है जीवन को पुष्य कीगरिमा से भरता है जीवन को पवित्रता की सुवास से भरता है जीवन को पँख देता हैपरलोक जाने के लिये परमात्मा की खोज कीआकाँक्षा जगाता है।

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