शनिवार, 19 मार्च 2016

दादूदयाल जी को गुरु ने चिताया


सन्तमहापुरुष जीव को जगायें तभी जीव जाग सकता है क्योंकि सारा संसार तो स्वंय सो रहा है सोया हआ किसी सोये को कैसे जगा सकता है? जागा हुआ ही सोये को जगा सकता है। सन्त महापुरुष जागे हुये होते हैं वे ही जीवों को जगा सकते हैं और जगाते हैं आवाज़ लगाते हैं।जो उनकी आवाज़ को सुनकर जाग जाते हैं वो अपना काम बना लेते हैं।
    सन्त दादू दयाल जी के जीवन गाथा में एक प्रसंग मिलता है जब सन्त दादू दयाल जी दूकान का कार्य करते थे एक बार उनके श्री गुरुमहाराज जी दूकान पर आये बाहर से आवाज़ लगाई।दादू।श्री दादूदयाल जी अपने बही खाते में व्यस्त थे।वर्षा हो रही थी वर्षा की आवाज़ की वजह से कुछ कार्य में व्यस्त रहने के कारण गुरुदेव द्वारा दी गई आवाज़ों को श्री दादूदयाल जी ने न सुना। कुछ देर गुरुदेव को इन्तज़ार करते बीत गई तो दादू दयाल जी ने थोड़ी देर बाद निगाह उठाई तो सामने गुरुदेव को पानी में भींगते हुए दुकान के बाहर खड़े पाया तो एकदम उठे दौड़कर दण्डवत वन्दना की। प्रार्थना करके अन्दर ले आये और क्षमा माँगने लगे।विनय की प्रभो आप अन्दर क्यों न आ गये?और न ही आवाज़ लगाई।आपको बाहर इन्तज़ार करना पड़ा आपको कष्ट हुआ इसके लिये क्षमा कर देना। गुरुदेव ने कहा- दादू।मुझे तो थोड़ी देर इन्तज़ार करनी पड़ी है और जो ईश्वर तेरी कईजन्मों से इन्तज़ार कर रहा है कि कब दादू जागे और मेरे पास आये।उस इन्तज़ार का क्या होगा? कहते हैं उसी समय सन्त दादूदयाल जी दुकान का कार्य छोड़कर प्रभु भजन भक्ति में लीन हो गये।जाग गये।सतपुरुष ही अपनी दया से जीवों को जगाते हैं वे जीव आप जैसे सौभाग्यशाली है जो महापुरुषों की शरण में आ गये हैं उनके सतसंग द्वारा उनके वचनों द्वारा जो जाग करके अपने निजी कार्य आत्मा के कल्याण में लग गये हैं और अपना जीवन सफल बना रहे हैं।
     हमारा सबका कर्तव्य है कि महापुरुषों के वचनों के अनुसार जो हमारे जीव कल्याण के लिये ये साधन बनाये हैं उनपर चलते हुए मोह की नींद को त्याग  कर जागकर अपना काम जो आत्म  कल्याण का निजी कार्य है श्री आरती पूजा सतसंग सेवा सुमरिण और भजन ध्यान करते हुये अपने जीवन को सफल बनाना है और परलोक भी सँवारना है।

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