रविवार, 20 मार्च 2016

रब्ब दा पाइयाई बड्डा है


बाबा फरीद की माँ ने कहा बेटा घर में शक्कर नहीं है। बाज़ार से शक्कर ले आ। बाबा फरीद जी ने पूछा, माँ कितनी शक्कर ले आऊँ? माँ ने कहा, एक पाव ही काफी है। एक पाव शक्कर ले आ। बाबा फरीद परमात्मा के ध्यान में ऐसे बैठे कि शक्कर लाना ही भूल गये। और सारी रात बैठे ही रह गये। माँ ने भी उन्हें ध्यान से उठाना उचित न समझा और दरवाज़ा बन्द करके सो गई। फरीद जी सारी रात बैठे रहे सुबह हुई माँ ने दरवाज़ा खोलना चाहा दरवाज़ा खुले ही नहीं। दरवाज़ा बाहर की तरफ खुलता था। बाहर आँगन शक्कर से भरा पड़ा था और शक्कर दरवाज़े की झीरी में से कमरे में आने लगी थी। कठिनता से दरवाज़ा खोला। माँ ने देखा आँगन सारा ही शक्कर से भरा पड़ा है। बाबा फरीद जी समाधी से उठे तो माँ ने कहा मैने तो एक पाव शक्कर लाने को कहा था, इतनी सारी शक्कर क्या करनी थी। बाबा फरीद जी ने जवाब दिया माँ मैने तो अल्लाह से, परमात्मा से पाव के लिये ही कहा था, लेकिन मैं क्या करूँ भगवान का पाव ही बहुत बड़ा है। उसने तो अपने हिसाब से पाव ही दी होगी। परमात्मा का हम जीवों के साथ इतना प्यार है वह हमारी हर माँग को पूरा करता है इसलिये ये कहा है कि माता से हरि सौ गुणा। आगे वर्णन करते हैं। 
हरि से गुरु सौ बार।
ईश्वर के प्यार से सतगुरु का प्रेम अपने शिष्य से, प्रिय सेवक से, सौ गुणा अधिक होता है। सतगुरु का शिष्य से आत्मिक नाता है। सतगुरु शिष्य का आत्मिक पिता भी है माता भी है स्वयं ईश्वर भी और सतगुरु भी। सतगुरु में चारों रूप समाये हुये हैं। मात पिता सतगुरु मेरे शरण गहूं किसकी। गुरू बिन और न दूसरा आस करूँ जिसकी। सतगुरु पिता की तरह पालक और माता की तरह शिष्य की हर गल्तियों को नज़र अन्दाज़ करता है। इसलिये उन्हें सबसे अधिक प्रेम करने वाला कहा गया है। सतगुरु करूणा और प्रेम का स्वरूप हैं। सतगुरु को ईश्वर से सौ गुणा अधिक प्यार करने वाला इसलिये कहा है ईश्वर ने जीव की हर इच्छा को पूरा करना है चाहे वह उचित है या अनुचित। जीव की इच्छा चाहे माया की दलदल में फँसाने वाली है चाहे चौरासी में ले जाने वाली है या उसे नरक में ले जाने वाली है या उसे स्वर्ग तक पहुँचाने वाली है उसे ईश्वर ने पूरा करना है। उसे आप की अच्छी या बुरी माँग से कोई सरोकार नहीं। जो माँगोगे मिलेगा। क्योंकि वह हमारी स्वतन्त्रता में रूकावट नहीं डालता भले ही जीव कितना दुःखी और अशान्त हो, लेकिन सतगुरु का ह्मदय मक्खन से कोमल होता है।
श्रीरामायण में वर्णन हैः-      
         सन्त ह्मदय नवनीत समाना। कहा कविन्ह पर कहई न जाना।
         निज  प्रताप  द्रवहिं नवनीता। परहित द्रÏव्ह सो सन्त पुनीता।।
सतगुरु का ह्मदय मक्खन से भी कोमल होता है। मक्खन तो जब स्वयं को
सेक (गर्मी) पहुँचता है तो वह पिघलता है। लेकिन सन्तों का ह्मदय दूसरों के दुःख को देखकर  पिघल जाता है।

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