मंगलवार, 22 मार्च 2016

शिकारी आयेगा जाल बिछायेगा


कहते हैं कि एक बार किसी महात्मा का एक बाग में स्वाभाविक जाना हुआ। देखा कि वृक्षों पर कुछ सुन्दर सुन्दर तोते कलोल कर रहे हैं। सोचने लगे कि कितने कमनीय हैं ये तोते। फिर विचार आया कि कहीं ये किसी शिकारी के जाल में चोग के लालच में आकर फँस न जावें। इस विचार से उन्होने एक तोते को पकड़ा और अपने आश्रम पर ले आये।उसे यह पाठ पढ़ाना आरम्भ किया,""शिकारीआएगा,जाल बिछाएगा, दाना डालेगा हमको फँसायेगा परन्तु हम नहीं फँसेंगे।''जब कुछ दिन निरन्तर पढ़ाने के पीछे तोते ने वे शब्द रट लिये तो महात्मा जी ने जाकर उस तोते को बाग में दूसरे तोतों के बीच में छोड़ दिया। ज्यों ही उस तोते ने अपने साथियो में जाकर महात्मा की पढ़ाई हुई शिक्षा बोलनी शुरु की-दूसरे तोते भी उसकी नकल कर वे ही शब्द बोलने लगे-""शिकारी आयेगा, जाल बिछायेगा, दाना डालेगा, हमको फँसाएगा।परन्तु हम नहीं फँसेंगे।''पहले वह पढ़ा हुआ तोता शब्द बोलता और दूसरे तोते उसकाअनुकरण करते।भाव यह कि वहाँ एक प्रकार की पाठशाला खुल गई।जैसे अध्यापक बच्चों को पढ़ाता है इसी प्रकार वह तोता दूसरे तोतों को पढ़ाने लगा। उन तोतों को भी वे शब्द भलीभाँति कण्ठस्थ हो गये। महात्मी जी ने समझ लिया कि अब ये तोते किसी तरह भी शिकारी के जाल में नहीं आ सकते।
     संयोगवश एक शिकारी उस बाग में आ गया।उसकी दृष्टि बाग के तोतों पर पड़ी उसे उन्हें पकड़ने की चाह हुई। किन्तु जब उनके मुख से उठती हुई उस ध्वनि को सुना, तो वह अचकचा गया और सोचने लगा कि ये तोते तो किसी अध्यापक के पढ़ाये हुए हैं ये क्योंकर मेरे पाश में आ सकेंगे।अच्छा,प्रयत्न तो करता हूँ।उसने जाल बिछाकर चोग डाल दी।तोतों ने सामने पड़ी हुई चोग देखी और लालच के मारे जाल पर आ बैठे। फल यह हुआ कि वे जाल में फँसते भी जा रहे हैंऔर वे शब्द भी बोले जाते हैं। शिकारी जाल समेट कर प्रसन्न हुआ हुआ घर को चल दिया। वहां उन्हें उसने पिंजरों में डाल दिया। दो एक दिन के बाद उन्हें बाज़ार में बेचने के लिये चला। आश्चर्य तो यह है कि वे तोते पिंजड़ों में बैठे हुए-बाज़ार में बिक रहे हैं परन्तु मुख से उसी शब्द को दोहराए जा रहे हैं कि,""शिकारी आएगा,जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, हमें फँसाएगा किन्तु हम नहीं फँसेंगे।
     यही दशा प्रायः संसारियों की है। ये तोते क्या हैं? ये संसारी जीव हैं।इस जगत रूपी बाग में आ जाते हैं। काल रुपी शिकारी ने इस बाग में आकर संसारी जीवों को फँसाने के हेतु विलासिता की सामग्री बखेर दी है। तोतों की भाँति संसारी जीव दाने के लोभ में शिकारी के जाल में उतर आते हैं। उन्हें दाना तो नज़र आता है परन्तु माया का जाल और काल-शिकारी नज़र नहीं आते।प्रायः संसारी जीव सुनतेऔर पढ़ते हैं किमोह-माया बन्धन रुप है,काल रुपी शिकारी है-हम मोह-माया के बन्धन में फँसकर कालरूपी शिकारी के हवाले हो रहे हैं।जहाँ कि जीवात्मा को अनेक योनियों में आवागमन के चक्कर काटने पड़ते हैं। जितने भी धर्म ग्रन्थ हैं उन सबमें प्रभु की विशेषताएं लिखी हुई हैं। वे अपने प्रकाश की ओर ले जाते हैं,सुमार्ग दिखलाते हैं किन्तु वे स्वयं प्रकाश नहीं है। उनके पढ़ लेने मात्र से,और ऊँचे स्वर में पाठ कर लेने से,मन का अऩ्धकार दूर नहीं हो सकता। मन का अन्धेरा तभी दूर होगा जब हम धर्मग्रन्थों के बताये हुए मार्ग पर चलकर अपने जीवन को आचरणमय बनायेंगे। एक बार क्याअनेक बार भी ग्रंथों का पाठ किया जाये परन्तु लक्ष्य की प्राप्ति तभी होगी जब उनके दर्शाये हुए मार्ग पर आचरण किया जायेगा।

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