गुरुवार, 3 मार्च 2016

भिखारी से फिर राजकुमार बना


एक सम्राट का लड़का घर से भाग गया।पांच साल तक बाप ने उसकी फिक्र न की। क्रोध में था बाप भी। लेकिन एक ही लड़का था। बाप बूढ़ा होने लगा, तब उसे याद सताने लगी। फिर उसने अपने वज़ीर के कहा ढूँढो, उसे ले आओ वापिस। वह लड़का बेचारा,राजा का लड़का होना भी कभी-कभी बड़ा दुर्भाग्य होता है। लड़का तो न ठीक से पढ़ा, न लिखा। कभी कोई मेहनत न की थी। तो सिवाय भीख मांगने के और कोई उपाय न रहा। राजा का लड़का अगर राजा न रह जाये तो भिखारी ही हो सकता है,और कोई उपाय नहीं है। भीख मांगने लगा। पांच साल में तो भूल ही चुका था कि राजा का लड़का है।कैसे याद रखे,जबमांगनी पड़ती हो भीख तो कितनी देर  तक याद रखो कि राजा के लड़के हैं। थोड़े दिन याद रहा होगा,फिर भूल गया,फिर मिट गया ख्याल भी। वज़ीर खोजतेखोजते उस गांव में पहुंचे,जहां वह भरी दोपहरी में एक साधारण-सी गंदे होटल के सामने जुआ खेलते लोगों से भीख मांग रहा था।पैर में फफोले पड़े थे,कपड़े फट गये थे।कपड़े वही थे,पांच साल पहले जिनको लेकर निकला था।लेकिन अब पहचानना मुश्किल था। न कभी धुले थे, धूल, कीचड़ सब कट-पिट गये,सब पांच साल में बर्बाद हो गये। उन्हीं फटे कपड़ों कों पहने हुए हाथ जोड़े भीख मांग रहा था, जूते के लिए। जूते समाप्त हो गये थे और भरी तेज़ धूप थी और सड़कें जलती थीं। उसके पैर पर फफोले थे,और कपड़े बांधे था और लोगों से कह रहा था मेरे पैर पर फफोले हैं दया करो और कुछ चार पैसे दे दो, कि मैं जूते खरीद लूँ। लोग उसकी तरफ ध्यान ही न दे रहे थे। कोई उसकी फिक्र ही न कर रहा था। तभी रथ रूका उस द्वार के सामने आकर। वज़ीर ने नीचे उतरकर देखा, वही मालूम पड़ता है। भागा हुआ पास गया, चेहरा देखा, वही है। पैर पर गिर पड़ा और कहा कि महाराज ने याद किया है, वापिस चलें। पिता बीमार हैं। राज्य का अधिकार कौन सम्भाले?हाथ में टूटा-सा एल्मुनियम का बर्तन था, दस पांच पैसे उसमें पड़े थे। एक क्षण में सब बदल गया।पात्र फेंक दिया उसने जोर से सड़क पर।सारे जुआरी चौंककर खड़े हो गये,सामने रथ खड़ा देखा।जुआ बन्द हो गया, होटल के सारे लोग बाहर आ गये। उसने वज़ीर ने कहा, आओ,पहले तो यह करो, अच्छे वस्त्र लाओ, जूते लाओ,स्नान का इंतज़ाम करो, भोजन का इंतज़ाम करो। उसकी आँखें बदल गयीं उसका चेहरा बदल गया, कपड़े अभी भी वही थे, सड़क वही थी, होटल वही था, पात्र नीचे पड़ा था, लेकिन अब वह सम्राट हो गया था। होटल के लोगों ने कहा, आपका चेहरा एकदम बदल गया। उसने कहा, बात मत करो, सोच कर बोलो, किससे बोल रहे हो।सम्राट हूँ वज़ीर कंप रहा है, लोग भागे हैं, कपड़े आ गये हैं, सब इंतज़ाम हो रहा है, इत्र छिड़के जा रहे हैं, स्नान करवाया जा रहा है। वह आदमी रथ पर बैठ गया। वे होटल के लोग बड़े उत्सुक हैं कि थोड़ी तो पहचान याद रखना। परअब बात बिल्कुल बदल गई है। पहले वे उसकी तरफ देख भी न रहे थे, अब वह उनकी तरफ बिल्कुल नहीं देख रहा है, अब वह कहीं और है। क्या हो गया है इस क्षण में?एक क्षण में एक किरण आयी, एक स्मरण आया, एक रथ आया द्वार पर, जिसने कहा सम्राट हो तुम।
         ध्यान की गहराइयों में वह किरण आती है, वह रथ आता है द्वार पर जो कहता है सम्राट हो तुम,परमात्मा हो तुम, प्रभु हो तुम।उस दिन ज़िन्दगी और हो जाती है। उस दिन चोर होना असंभव है। सम्राट कहीं चोर होते हैं।उस दिन दुःखी होना असंभव है। उस दिन एक नया जगत शुरु होता है। उस जगत, उस जीवन की खोज ही धर्म है।

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