रविवार, 6 मार्च 2016

वारण्ट पत्र



किसी मनुष्य ने घोर तप किया। भगवान ने उस पर प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा। उसने वर यह मांगा कि""जब मुझे इस असार संसार से कूच करना हो मुझे एक सप्ताह पूर्व इस का ज्ञान हो जाए।'' भगवान तथास्तु कह कर अन्तर्हित हो गये। वह मनुष्य मृत्यु से निर्भीक और निश्चिन्त होकर संसार के आनन्द लेने लगा।उसे इस बात का स्वप्न में भी विचार न रहा कि यह विश्व विनश्वर है।यहाँ न कोई रहा है और न कोई रहेगा। इस क्षणभंगुर विश्राम शाला से एक न एक दिन हर किसी को जाना है। निदान एक दिन यमदूत उसके सिर पर आ धमका। वह तो नितान्तअसावधान था। मरने की उसे आशंका तक भी न थी। संसार के लोभ में वह इतना ग्रस्त था कि उसे मौत और प्रभु की तनिक भी खबर न रही। परन्तु मरता क्या न करता। चारोंओर से निराश होकर वह यमदूतों के साथ चल खड़ा हुआ। धर्मराज की अदालत में पहुँचते ही उसने प्रश्न किया। श्रीमान मैने तो श्रीमान् से वचन लिया था कि मुझे मरने से एक सप्ताह पूर्व सूचना मिलनी चाहिए।किन्तु क्या कारण है जो मुझे सूचना बिना दिये एकदम से गिरफ्तारी का वारंण्ट जारी किया गया जिसके अनुसार मुझे बन्दी बनाकर यहां लाया गया है। धर्मराज तत्काल अपने दूतों से बोले, क्यों भाई! आप ने इसे सूचित न किया था? उन्होने हाथ बाँधकर निवेदन किया कि प्रभो! हम ने तो इसे कई बार सूचना दी किन्तु यह हरबार आनाकानी करता रहा। अन्ततोगत्वा हमने सरकार के अनुसार इसको बन्दी बनाने का आदेश इसके द्वार पर चिपका दिया। तदनुसार इस अपराधी  को नियत तिथि  व  समय बन्दी करके आपके न्यायाधिकरण में उपस्थित कर दिया है।
     यह सुनते ही वह एकदम चीखा,श्रीमान्!यह एकदम झूठ है। मुझे एक बार भी सूचना नहीं दी गई। मृत्यु के दूतों नेअपनी सत्यता को प्रमाणित करने के लिये सरकारी वकील को खड़ा किया।वकील ने सारा चिट्ठा पढ़कर सुनाया।जिसमें लिखा था कि इसे 1-2-3-4 बार प्रस्थान करने के सन्देश दिये गये किन्तु हर बार यह कहीं अदृश्य हो जाने का विफल प्रयास करता रहा।परन्तु हम इसे खोज कर प्रस्थान काल में इस से पत्र पर हस्ताक्षर करवा लेते थे।उन दिनों यह सुरापान में इतना प्रमत्त रहता था कि हमारी सूचना को एकदम से काट देता था। अन्ततः हमने श्रीआज्ञानुसार जमानत के बिनाआदेश-पत्र दिखाकर इसे बन्दी बना लिया और आपके सन्मुख प्रस्तुत कर दिया।इतना सुनने पर वह एक बार फिर चीख उठा। श्रीमान्! यह मिथ्या कथन है।नितान्त असत्य है। मुझसे कोई भी हस्ताक्षर नहीं कराया गया। नाही कोई आदेश पत्र द्वार पर चिपकाया गया।यमराज ने कड़क करअपने साथियों की ओर फिर देखा क्यों भाई! क्या बात है?धर्मराज का संकेत पाकर सरकारी वकील ने विवाद करना आरम्भ किया।
सरकारी वकील-(अपराधी से) क्यों भाई! तुम्हारे शहर में कोई मृत्यु हुई? बन्दी-ऐसी बातें जो प्रायः प्रतिदिन देखने में आती थीं।परन्तु मैं तो निर्भय था कि मुझे तो एक सप्ताह पूर्व सूचना मिलेगीऔर मैं उन दिनों परलोक सुधार लूँगा।
वकील-तेरे मुहल्ले में कोई मरा?
बन्दी- जी हाँ प्रभो! परन्तु इससे मुझे क्या सरोकार?वैसे तो मेरे मुहल्ले
में, फिर मेरे निकट के सम्बन्धियों में और फिर मेरे अपने ही घर में मृत्यु के आक्रमण हुए परिणाम यह हुआ कि मेरे पिता-दादा उठ गये। प्रत्युत मैं स्वयं ही उन्हें कंधों पर लादकर मरघट तक पहुँचा आया किन्तु मुझे तो सूचना न हुई फिर मेरे द्वार परआदेश-पत्र कहां चिपकाया गया? वकील-क्या इससे तुझे सूचना न मिली?जब मृत्यु के दूतों ने तेरे नगर में, फिर तेरे मुहल्ले में, पुनः तेरे ही घर में ढोल बजाना आरम्भ कर दिये यही तो सूचना थी कि अब तेरी बारी आने वाली है।
          बारी बारी अपने चले पियारे मित्त।।
          तेरी बारी जीयरा,नियरै आवै नित्त।।
          माली आवत देखि कै, कलियाँ करें पुकारि।।
          फूलि फूलि चुनि लिये, काल्हि हमारी बार।।
इससे सपष्ट होता है कि तेरी आँखों पर प्रमाद की पट्टी बँधी हुई थी और तू जीवन के नशे में बेसुध था क्या यह ठीक नहीं है?
अपराधी-यह तो सत्य है परन्तु यह तो सर्वथाअसत्य है कि मेरे दरवाजों पर समर चिपकाया गया। वकील ने अट्टहास करते हुए कहा, अरे! मरने से पहले क्या तुझे कई बीमारियों ने नहीं घेर रखा था? क्या तू आए दिन वैद्यों और डाक्टरों की दवाइयों के अधीन नहीं हुआ था? तेरे माथे पर चिन्ता परेशानी का डेरा नहीं आ गया था?
बन्दी-लज्जा से सिर झुकाये हुए, जी हाँ यह तो सच है।
वकील- फिर तू स्वयं ही बता कि इससे यह सिद्ध न हो गया कि तेरे द्वार पर प्रयाण काल का समन वस्तुतः ही चिपकाया गया था। जीव के नेत्रों से टपटप आँसूँ गिरने लगे।ढाढें मार मार कर रोने लगा,श्रीमान!
मुझपर दया करो, मेरी बड़ी भारी भूल थी। मैने आपके इशारों को नहीं समझा। मेरी आँखों पर असावधानी की पट्टी बँधी रही। तुम्हारे दूत झनझोर झनझोर कर जगाते रहे परन्तु मेरे कानों पर जूँ तक न रींगी। परन्तु प्रभो! अब करुणा करके मुझे कुछ समय दो, जिससे मैं कुछ भजन पूजन कर सकूँ। परन्तु अब वहाँ उसकी सुनने वाला कौन था? धर्मराज के यमदूत उसे किसी तरफ घसीटते हुए ले गये। तभी तो महापुरुष कथन करते हैं किः-
          कह नानक राम भज ले जात अवसर बीत।।

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