गुरजिएफ
कहा करता था कि मैने एक ऐसे घर के सम्बन्ध में सुना है जिसका मालिक कहीं
दूर यात्रा पर गया था। बहुत बड़ा भवन था, बहुत नौकर थे। वर्षों बीत गए,मालिक
की खबर नहीं मिली।मालिक लौटा भी नहीं,सन्देश भी नहींआया।धीरे-धीरे नौकर यह
भूल गए कि कोई मालिक था भी कभी। भूलना भी चाहते हैं नौकर कि कोई मालिक है
तो जल्दी भूल गए। फिर कभी कोई यात्री उस महल के बाहर से निकलताऔर कोई नौकर
सामने मिल जाता तो वह उससे पूछता कौन है इस भवन का मालिक?नौकर कहता,मैं हूँ
इसका मालिक।लेकिन आसपास के लोग बड़ी मुश्किल में पड़े क्योंकि कभी द्वार पर
कोई मिलता,कभी द्वार पर कोई और बहुत नौकर थे और हरेक कहता कि मालिक मैं
हूँ।
सारे लोग चिंतित हुए कि कितने मालिक हैं इस भवन के।तब एक दिन सारे गांव
के लोग इकट्ठे हुए और उन्होने पता लगाया।सारे घर के नौकर इकट्ठे किए, तो
मालूम हूआ वहां कई मालिक थे। अब बड़ी कठिनाई खड़ी हो गई। सब नौकर लड़ने लगे।
उन्होने कहा,मालिक हम हैं और जब बात बहुत बढ़ गई तब उसी एक बूढ़े नौकर ने
कहा, क्षमा करें, हम व्यर्थ विवाद में पड़े हैं। मालिक घर के बाहर गया है।
हम सब नौकर हैं। मालिक लौटा नहीं, बहुत दिन हो गए,हम भूल गए। और अब कोई
ज़रूरत भी नहीं रही याद रखने की। शायद वह कभी लौटेगा भी नहीं।फिर मालिक
तत्काल विदा हो गए यानी वे तत्काल नौकर हो गये। गुरजिएफ कहा करता था, यह
आदमी के चित्त की कहानी है।
जब तक भीतर की आत्मा जागती नहीं तब तक चित्त का एक-एक टुकड़ा एक-एक नौकर
कहता है, मैं हूँ मालिक। जब क्रोध करने वाला टुकड़ा सामने होता है तो वह
कहता है, मैं हूँ मालिक।ओर वह मालिक बन जाता है है कुछ देर के लिए, और पूरा
शरीर उसके पीछे चलता है। इसी तरह अन्य विकार। मालिक बने हुए हैं। असली
मालिक का पता ही नहीं। जब तक असली मालिक न आ जाये तब तक अराजकता रहेगी। इसी
तरह मन कई खण्डों में बंटा है जब तक मन सब तरफ से एकत्र नहीं होता एक नही
होता सुख प्राप्त नहीं हो सकता।
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