गुरुवार, 2 जून 2016

जादूगर हूदनी

एक बहुत बड़ा जादूगर हुआ-हूदनी। उसकी सबसे बड़ी कला यह थी कि कैसी ही जंज़ीरों में उसे कस दिया जाए, वह क्षणों में खोलकर बाहर आ जाता था। जंज़ीरों को कसकर, पेटियों में बंद करने, पेटियों पर ताले डालकर उसे समुद्र में फेंका गया। वहां से भी वह मिनटों के भीतर से बाहर आ गया। दुनियाँ के सभी जेलों में उस पर प्रयोग किए गए, सभी तरह के पुलिस ने अपने इंतज़ाम किए-इंग्लैंड में, अमेरिका मे, फ्रांस में, जर्मनी में, उसको जेल की कोठरी में डाल देते, तालों पर ताले जड़ देते, हाथों में जंज़ीरें, पैरों में जंजीरें और मिनटें भी नहीं बीतती--- तीन मिनट से ज्यादा उसको कभी नहीं लगे थे जीवन में किसी भी स्थिति से बाहर आ जाने में बड़ी चौंकाने वाली उसकी कला थी।
     लेकिन इटली में वह हार गया। इटली में जाकर बड़ी बुरी तरह हारा। घंटे भर तक न निकल सका, तीन घंटे लगे। जो भीड़ इकट्ठी हो गयी थी हज़ारों लोगों की, वे तो घबड़ा गए कि मर गया हूदनी या क्या हुआ? यह तो किसी को भरोसा ही नहीं था। तीन मिनट तो आखिरी सीमा थी। सेकेंडों में निकल आता था। यह हुआ क्या? और जब तीन घंटे बाद हूदनी निकला, तो उसकी हालत बड़ी खस्ता थी। पसीना-पसीना था। माथे की नसें चिंता से फूल गयी थीं। आँखें लाल हो गयी थीं। बाहर आया, तो हांफ रहा था। पूछा गया कि हुआ क्या? इतनी देर कैसे लगी? उसने कहा कि, "मेरे साथ बड़ा धोखा किया गया। दरवाज़े पर ताला नहीं था।' और बेचारा कोशिश करता रहा खोलने की कि कहां से खोले, ताला हो तो खोले? एक मज़ाक काम कर गया। दरवाज़े पर ताला होता तो खोल ही लेता वह। ताला खोलने की तो उसके पास कला थी। ऐसा तो कोई ताला नहीं था, जो वह नहीं खोल लेता, मगर ताला था नहीं, दरवाज़ा सिर्फ अटका था। सांकल भी नहीं चढ़ी सांकल भी चढ़ी होती, तो खोल लेता था न सांकल थी, न ताला था। भीतर कुछ था ही नहीं। वह बड़ा घबड़ाया, उसने सब तरफ खोजा, कोई उपाय न देखे। पहली दफा हारा। तीन घंटे बाद, लोगों ने पूछा,"फिर कैसे निकले?' उसने कहा, "ऐसे निकले कि जब तीन घंटे के बाद बिलकुल थक गया और गिर पड़ा, दरवाज़े को धक्का लगा और दरवाज़ा खुल गया।'
    (जब इंसान चारों तरफ से थक जाता है गिर जाता है, हार जाता है कि मुझे संसार में, धन में, पद में प्रतिष्ठा में कुछ प्राप् नहीं हुआ मैं अब आपकी शरण में हूँ, अर्थात् अपने आपको प्रभु के आगे सरैन्डर कर देता है तभी भीतर का ताला जो कि वास्तव में ताला है ही नहीं खुल जाता है अर्थात् परमात्मा का दरवाज़ा खुल जाता है जीव उसमें सहज ही प्रवेश पा जाता है।)

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