मंगलवार, 14 जून 2016

ताबीज़ जिससे तीन माँगे पूरी होती थीं


समझदार व्यक्ति परमात्मा से यह नहीं कहता कि मेरी प्रार्थना पूरी करना, वह उससे कहता है, जो तेरी मर्ज़ी, वह तू पूरी करना। क्योंकि हम तो यह भी नहीं जानते, क्या मांगे? हम तो गलत ही मांगेंगे, क्योंकि हम गलत हैं। हमारी तो मांग भी उपद्रव होगी। और पूरे जीवन की कथा भी यही है कि जो तुमने मांगा, वह तुम्हें मिल गया। फिर तुम उससे परेशान हो रहे हो। न मिलता तो रोते, मिल गया तो रो रहे हो।
     एक बड़ी प्राचीन कहानी है। एक आदमी यात्रा से लौटा है। अपने मित्र के घर ठहरा और उसने मित्र से कहा रात, यात्रा की चर्चा करते हुए, कि एक बहुत अनूठी चीज़ मेरे हाथ लग गई है और मैने सोचा था कि जब मैं लौटूंगा तो अपने मित्र को दे दूँगा। लेकिन अब मैं डरता हूँ, तुम्हे दूं या न दूं। डरता हूँ इसलिए, कि जो भी मैने उसके परिणाम देखे वे बड़े खतरनाक हैं। मुझे एक ऐसा ताबीज़ मिल गया है, कि तुम उससे तीन आकांक्षायें मांग लो, वे पूरी हो जाती हैं। और मैने तीन खुद भी मांग कर देख ली हैं। वे पूरी हो गई हैं। और अब मैं पछताता हूँ, कि मैने क्यों मांगीं? मेरे और मित्रों ने भी मांग कर देख लिए हैं, सब छाती पीट रहे हैं, सिर ठोंक रहे हैं। सोचा था तुम्हें दूंगा, लेकिन अब मैं डरता हूँ दूं या न दूं।
     मित्र तो दीवाना हो गया। उसने कहा, तुम यह क्या कहते हो न दूँ? कहां है ताबीज़? अब हम ज्यादा देर रूक नहीं सकते। क्योंकि कल का क्या भरोसा? पत्नी तो बिल्कुल पीछे पड़ गई उसके, कि निकालो ताबीज़। उसने कहा कि, अभी, मुझे सोच लेने दो। क्योंकि जो परिणाम सब बूरे हुए। उसके मित्र ने कहा, तुमने मांगा ढंग से न होगा गलत मांग लिया होगा। हर आदमी यही सोचता है कि दूसरा गलत मांग रहा है इसलिए मुश्किल में पड़ा। मैं बिलकुल ठीक मांग लूँगा। लेकिन कोई भी नहीं जानता कि जब तक तुम ठीक नहीं हो, तुम ठीक मांगोगे कैसे? मांग तो तुमसे पैदा होगी। नहीं माना मित्र, नहीं मानी पत्नी। उन्होने बहुत आग्रह किया तो ताबीज़ देकर मित्र उदास चला गया। सुबह तक ठहरना मुश्किल था। दोनों ने सोचा, क्या मांगें? बहुत दिन से एक आकांक्षा थी, कि घर में कम से कम एक लाख रूपया हो। तो पहला लखपति हो जाने की आकांक्षा थी, तो उन्होंने कहा, वह पहली आकांक्षा तो पूरी कर ही लें। फिर सोचेंगे। तो पहली आकांक्षा मांगी कि लाख रूपया।
    जैसे ही कोई आकांक्षा मांगोगे, ताबीज़ हाथ से गिरता था झटक कर। उसका मतलब था, कि मांग स्वीकार हो गई। बस, पंद्रह मिनट बाद दरवाज़े पर दस्तक पड़ी। खबर आई  कि लड़का जो राजा की सेना में था, वह मारा गया और राजा ने लाख रूपये का पुरस्कार दिया। पत्नी तो छाती पीट कर रोने लगी कि यह क्या हुआ? उसने कहा कि दूसरी आकांक्षा इसी वक्त मांगों, कि मेरा लड़का जिन्दा किया जाये। बाप थोड़ा डरा। उसने कहा कि यह अभी जो पहली का फल हुआ, पर पत्नी एकदम पीछे पड़ी थी कि देर मत करो। कहीं वे दफना न दे, कहीं लाश सड़ गल न जाये, जल्दी मांगों। तो दूसरी आकांक्षा मांगी, कि लड़का हमारा वापिस लौटा दिया जाय। ताबीज़ गिरा। पंद्रह मिनट बाद दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी। लड़के के पैर की आहट थी। उसने जोर से कहा, पिता जी। आवाज़ भी सुनाई पड़ी, पर दोनों बहुत डर गये। इतने जल्दी लड़का आ गया? बाप ने बाहर झाँक कर देखा, वहाँ कोई दिखाई नहीं पड़ता। खिड़की में से देखा, वहां कोई दिखाई नहीं पड़ता। कोई चलता फिरता मालूम पड़ता है।
     वह लड़का प्रेत होकर वापिस आ गया। क्योंकि शरीर तो दफना दिया जा चुका था। पत्नि और पति दोनों घबड़ा रहे हैं, कि अब क्या करें? दरवाज़ा खोलें कि नहीं? क्योंकि तुम भला कितना ही लड़के को प्रेम किया हो। अगर वह प्रेत होकर आ जाये तो हिम्मत पस्त हो जायेगी। बाप ने कहा, रुक। अभी एक आकांक्षा और मांगने को बाकी है। और उसने ताबीज़ से कहा, कृपा कर और इस लड़के से छुटकारा। नहीं तो अब यह सतायेगा ज़िन्दगी भर। यह प्रेत अगर यहां रह गया घर में-इससे छुटकारा करवा दें। और पति आधी रात गया ताबीज़ देने अपने मित्र को वापिस। और कहा, इसे तुम कहीं फेंक ही दो। अब किसी को भूल कर मत देना।
      पूरी ज़िन्दगी की कथा इस ताबीज़ की कथा में छिपी है। जो तुम मांगते हो वह मिल जाता है। नहीं मिलता है तो तुम परेशान होते हो। मिल जाता है, फिर तुम परेशान होते हो। गरीब दुःखी दिखता है, अमीर और भी दुःखी दिखता है। जिसकी शादी नहीं हुई वह परेशान है, जिसकी शादी हो गई है वह छाती पीट रहा है, सिर ठोंक रहा है। जिसको बच्चे नहीं है वह घूम रहा है साधू सन्तों के पास, कि कहीं बच्चा मिल जाय। और जिनको बच्चे हैं, वे कहते हैं, कैसे इनसे छुटकारा होगा। यह क्या उपद्रव हो गया। तुम्हारे पास कुछ है तो तुम रो रहे हो, तुम्हारे पास कुछ नहीं तो तुम रो रहे हो। और मौलिक कारण यह है, कि तुम गलत हो। इसलिये तुम जो भी चाहते हो, वह गलत ही चाहते हो। इसलिये धार्मिक व्यक्ति परमात्मा को धन्यवाद देता है, अधार्मिक प्रार्थना करता है उसकी सदा मांग है, कि कुछ दो। और धार्मिक की प्रार्थना सदा यह है कि तूने इतना दिया है कि मैं अनुगृहीत हूँ अब और क्या मांगना है?


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