सोमवार, 20 जून 2016

सम्यक जीवन

मोटा अर्थ है कि व्यायाम उतना करें जो सम्यक हो संतुलित हो। सूक्ष्म अर्थ भी है। इसका गहरा अर्थ है कि आप जो भी श्रम करें चाहे मानसिक तल पर चाहे शारीरिक तल पर वो हमेशा सम्यक हो वो कभी अति पर न चला जाये। वो अति पर चला जायेगा घातक हो जायेगा।
     बुद्ध के पास श्रोण नाम को एक राजकुमार दीक्षित हुआ था। वो वैभव में पला उसने कभी कोई दुःख नहीं देखे कभी नंगे पैर सड़क पर नही चला। वो भिखारी हो गया उसको अब चिथड़े पहनने पड़े और नंगे पांव चलना पड़ा। लेकिन बुद्ध देखकर हैरान हुये कि और भिक्षु तो ठीक रास्ते पर चलते हैं वो उन पगडन्डियों पर चलता है जहाँ काँटे हों उन पर जानबूझकर चलता है। और जब उसके पैरों से खून बहने लगता है और फफोले होने लगते हैं उसमें गौरव अनुभव करता है इसको वो तपश्चर्या समझ रहा है। इसको वो त्याग समझ रहा है। बड़ा सुन्दर था गौर वर्ण था। तीन महीने में वो सूखकर हड्डी हो गया। एक दम काला पड़ गया। बुद्ध ने एक दिन उसके पास जाकर कहा, एक बात पूछनी है। मैने सुना कि जब तुम राजकुमार थे तुम बीणा बजाने में बहुत कुशल थे। तो मैं ये पूछने आया हूँ अगर बीणा के तार बहुत ढीले हों तो संगीत पैदा होता है? तो उसने कहा तार बहुत ढीले हों तो संगीत कैसे पैदा होगा? ध्वनित ही नहीं होगा। बुद्ध ने कहा, तार अगर बहुत कसे हों तो संगीत पैदा होता है? तो उसने कहा, तार बहुत ज़्यादा कसे हों तो वो टूट जायेंगे। तब भी ध्वनित नहीं होगा। बुद्ध ने कहा, मैं तुमसे ये कहने आया हूँ, कि जो वीणा का नियम है वही जीवन का नियम है। तार बहुत ढीले हों तो बेकार हैं तार बहुत कसे हों तो बेकार हो जायेंगे। तारों की एक स्थिति ऐसी है कि जो न ढीले हैं और न कसे हुये हैं वही स्थिति जिन्हें आप न ढीले कह सको न कसे कह सको तभी उनमें संगीत पैदा होता है। और जीवन में भी वहीं संगीत पैदा होता है जहाँ संतुलन होता है। जहाँ इस तरफ या उस तरफ किसी अति पर नहीं होता है। एक आदमी अतिशय भोजन करता है फिर उपवास भी करता है। ये दोनों बातें पागलपन की है। न तो निराहार होना है न अति आहार करना है। सम्यक आहार लेना है।

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