एक बार की बात है किसी देश के राजा
की कथा है जो कि बड़ा दानी था| लेकिन उसका नियम था कि वह केवल एक निश्चित
समय पर दान दिया करता था| उसके बाद वह किसी को दान नहीं देता था| एक दिन उस
राजा के पास एक सन्त जी आये जिनका नियम था कि वे केवल एक ही घर में भीक्षा
के लिए जाते थे जो कुछ मिलता था उसी से गुजारा करते थे और जहाँ वे जाते
कुछ न कुछ थोडा या ज्यादा जरुर लाते थे| अब सन्त जी ने राजा से भीक्षा
मांगी लेकिन राजा का दान का जो निश्चित समय था वह ख़त्म हो चुका था| राजा ने
सन्त जी को कहा कि अब मैं तुम्हे भीक्षा नहीं दे सकता| क्योंकि मेरा यह
नियम है कि निश्चित समय पर ही दान देता हूँ| तब सन्त जी ने कहा कि मेरा भी
यह नियम है कि मैं भी एक घर से भीक्षा लेता हूँ तो आज तो मैं भीक्षा लेकर
ही जाऊँगा| तो राजा को क्रोध आ गया उसने क्या किया उसके पास घोड़े की लिद
पड़ी थी राजा ने वह उठाकर सन्त जी की झोली में डाल दी| सन्त जी तो पहले ही
बड़े सरल स्वभाव के थे उन्होंने राजा को कुछ नहीं कहा और झोली में लिद को
लिए वापिस चल दिये| रास्ते में भगवान को धन्यवाद कर रहे कि शुक्र है भगवान
तेरा| कि आज तेरी कृपा से मेरा नियम नहीं टूटा| उन्होंने अपने आश्रम के
बाहर उस लिद को गिरा दिया| कुछ दिनों बाद राजा अपने सैनिको के साथ वन की
तरफ जा रहा था तो रस्ते में वह क्या देखता है कि एक जगह पर बड़े-बड़े लिद के
ढेर जमा हो रखे है| राजा यह देखकर हैरान कि यहाँ तो आसपास कोई घोड़ो का
अस्तबल नजर नहीं आता फिर ये लिद के ढेर कहां से आ गये| तब उसने अपने सैनिको
को भेजा कि जाओ पता करके आओ| तो सैनिक जाते है तो वही पास में एक झोपडी
थी| जिसमे सन्त जी रहते है| जो राजा के यहाँ से लिद को झोली में लेकर आये
थे| अब सैनिको ने क्या किया वे झोपडी में गये और वहाँ बैठे सन्त जी से
पूछा- कि ये लिद के ढेर कैसे लगे है| तो सन्त जी ने जवाब दिया कि अपने राजा
से जाकर कहो कि ये वही लिद है जो राजा ने मेरी झोली में डाली थी| अब वह
बढती-बढती इतनी ज्यादा हो गई है| तो यह तो राजा को खानी पड़ेगी| अब सैनिक यह
सुनकर घबराते हुए कि कहीं राजा उन्हें जान से ना मार दे यह बात सुनकर वह
राजा के पास गये और राजा को सारा वृतान्त सुनाया| अब राजा भी काफी घबरा
गया| वह सन्त जी के पास गया और माफ़ी मांगने लगा| तो सन्त जी ने कहा- कि यह
लिद तो राजा जी आपको खानी ही पड़ेगी| ये आपके द्वारा किया गया पाप है| आपने
जो लिद मेरी झोली में डाली थी वह पाप बढ़ता गया और यहाँ लिद के ढेर इकट्ठे
हो गये| तब राजा ने अपने बुरे काम की श्रमा मांगी और उस लिद को खत्म करने
का उपाए पूछा| तो सन्त जी ने कहा कि नहीं राजा जी यह लिद तो आपको खानी
पड़ेगी| तब राजा ने घबराते हुए उत्तर दिया- कि इतनी लिद तो सात जन्म भी बीत
जाये तभी भी खाते-खाते खत्म न होगी| मैं आपसे दोबारा माफ़ी माँगता हूँ कृपा
करके इस लिद को ख़त्म करने का उपाए बताइये| तब सन्त जी ने दया कर राजा को
इसका उपाय बताया कि राजा तुम अब अपने राज्य में जाकर अपनी बुराइयाँ, अपनी
निन्दा करवाओ| उस निन्दा से तुम्हारे बुरे कर्म कट जायेंगे और यह लिद कम हो
जायेगी| राजा ने ऐसा ही किया उसने राज्य में जाकर लोगो पर कर लगाना शुरू
कर दिया| अत्याचार शुरू कर दिया जिससे कि पूरे राज्य में साथ-साथ दूसरे
राज्यों में भी राजा की निन्दा होने लगी| कुछ समय बाद जब राजा फिर से सन्त
जी के पास गया तो उनके द्वारा बताये रास्ते पर चलने से वह लिद के ढेर खत्म
हो गए थे| लेकिन वहीं थोड़ी सी लिद जो सन्त जी झोली मे लाये थे वह पड़ी थी|
तो राजा ने सन्त जी से पूछा कि यह लिद तो खत्म नहीं हुई तो सन्त जी ने कहा
कि यह तो तुम्हे खानी ही पड़ेगी| क्योंकि वह लिद जो खत्म हो गई वो तो
तुम्हारे द्वारा किये गए पापो का व्याज था जो कि निन्दा करवाने से ख़त्म हो
गया लेकिन यह तो असल पाप है जिसका दण्ड तो तुम्हे भुगतना ही होगा| तो कहने
का मतलब यही है कि कभी कोई ऐसा काम न करो कि हमारे पाप प्रकाशित होकर बढ़ते
जाये और उसका दण्ड हमें बहुत ज्यादा भुगतना पड़े| उदाहरणतः यदि हम किसी को
गलत बात कह देते है और जिससे दूसरे का दिल दुख जाता है तो वह जब-जब उस बात
को याद करेगा तो उसकी आत्मा दुखेगी तो पाप तो हमारा ही बढ़ता जायेगा| तो
मतलब यही है कि हमेशा ऐसा कर्म करो जो कि दूसरो के लिए हितकारी हो||
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