रविवार, 26 जून 2016

मूर्ति की नसीहत


एक सुंदर सुगंधित गुलाब के फूल ने पास पड़े एक पत्थर का मज़ाक उड़ाते हुए कहा-तुम्हारा शरीर कितना खुरदरा, बेजान और बेमतलब है? एक जगह पड़े रहते हो, आते-जाते लोगों के पांव की ठोकर खाते हो। पत्थर गुलाब की बात पड़े-पड़े सुनता रहा कुछ नहीं बोला। शाम को वही गुलाब का फूल मुरझा गया। कलियां उसे मुरझाते हुए देख रोने लगीं। उसी शाम एक मूर्तिकार की नज़र उस पत्थर पर पड़ी। उस मूर्तिकार ने छैनी हथोड़े के सहयोग से तराश कर उसमें से एक मनभावन सुंदर भगवान की मूर्ति को प्रकट किया। वह मूर्ति मंदिर में प्रतिष्ठित हुई। उसकी पूजा अर्चना होने लगी। वे कलियां जो अब फूल बन चुकीं थीं, उस मूर्ति के चरणों में अर्पित कर दी गई। फूलों को अपने चरणों में अर्पित किए जाने पर वह पत्थर हंसा। कलियां पत्थर की हंसी को समझ नहीं पार्इं, बड़ी लज्जा के साथ उन्होंने पूछा कि आप हम पर क्यों हंस रह हो? मूर्ति बने पत्थर ने बड़े धैर्य से कहा-बहनो! कृपा कर अपनी संतानों को इस बात से अवगत करा देना कि कोई फूल किसी पत्थर का मखौल नहीं उड़ाए। न उसे घृणा की नज़र से देखे। कौन जाने किसके भाग्य में क्या लिखा है? मूर्ति की बात सुनकर कलियां समझ गर्इं कि किसी का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए क्योंकि कल तक जो पत्थर लोगों के पांवों की ठोकरें खा रहा था आज उसी के चरणों में हज़ारों लोग सिर झुका रहे हैं।


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