शुक्रवार, 3 जून 2016

मैं पवित्र हूं, यही पाप हो गया


     एक सूफी फकीर जुन्नैद ज़िन्दगी भर रोता रहा। अपने को पीटता था, रोता था। रास्तों से निकलता था, तो अपने को खुद चांटे मारता था। लोग उससे पूछते थे कि क्यों इतना पश्चाताप करता है? क्या पाप किया है तूने? क्योंकि जैसा हम तुझे जानते हैं, तुझसे ज्यादा पवित्र आदमी खोजना मुश्किल है। और अगर तू इतना दुःखी है, पश्चाताप से भरा है, तो हमारी क्या गति होगी? और हम इतने पाप कर रहे हैं, हमें ज़रा भी पश्चाताप नहीं है। तूने पाप क्या किया है? यह गाँव तुझे बचपन से जानता है न तूने कभी चोरी की, न कभी क्रोध किया, न किसी को गाली दी, न किसी का अपमान किया। तुझसे ज्यादा पवित्र आदमी पृथ्वी पर भी शायद दूसरा न हो। लेकिन जुन्नैद  अपने को सजा देता रहा। मरते वक्त, उसके शिष्य हज़ारों थे, वे इकट्ठे हुए, उन्होने कहा, अब तो बता दो कि सजा किसकी दे रहा था? तो उसने कहा कि एक बार मेरे मन में ऐसा ख्याल आ गया था कि मैं बड़ा पवित्र हूँ वही पाप हो गया। और परमात्मा के सामने खड़े होकर मैं अब आँखें भी न उठा सकूँगा क्योंकि मैंने एक पाप किया है। यह ख्याल मुझे एक बार आ गया था, कि मैं पवित्र हूँ। उसकी ही सजा अपने को दे रहा हूँ। लोगों ने कहा, पागल हो गये हो ? अगर इतने से पाप से तुम परमात्मा के सामने आँखें न उठा सकोगे, तो हमारा क्या होगा? जुन्नैद ने कहा, तुम मज़े से आँखें उठा सकोगे। तुम्हारे पाप इतने हैं कि तुम्हें शर्म भी न आयेगी। और शर्म भी कितनी करोगे? मैं भी तुम जैसा होता, तो कोई चिन्ता न थी, बस वह एक अटक गया है। शुभ्रवस्त्र पर वह काला दाग ऐसा दिखायी पड़ता है कि उसे मैं भूल नहीं पाता, उसकी ही पीड़ा है। इसे ख्याल रखें कि जैसे जैसे आप अन्तर्यात्रा में बढ़ते हैं वैसे वैसे छोटी छोटी चीज़ें बड़ी मुल्यवान हो जाती हैं।

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