रविवार, 5 जून 2016

अमीर खुसरो की गुरु पर श्रद्धा


     जिन खुशनसीब जीवों ने अपने आपको सतगुरु के प्रेम के बन्धन में बँधाया है उनके नाम इतिहास में अमर हैं। उनकी प्रेम कथाओं को पड़ सुनकर अपने दिलों में लोग प्रभु प्रेम का संचार करते हैं। सच्चा आनन्द प्राप्त करते हैं। ऐसे खुशकिस्मत विरले ही होते हैं जो संसार की मोह माया को त्याग कर  सतगुरु के चरणों का प्यार प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बना जाते है।
     इतिहास में अमीर खुसरो का नाम अमर है जिसने संसार की झूठी धन दौलत का त्याग करके अपने सतगुरु का पावन प्यार प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बनाया था। वह प्रसंग इस प्रकार है।
    बाबा फरीद जी के परम शिष्य हज़रत निजामुद्दीन औलिया अपने समय के उच्चकोटि के सूफी फकीर थे। आप अमीर खुसरो के कामिल मुर्शिद थे। जिनके नाम पर दिल्ली के एक रेलवे स्टेशन का नाम निजामुद्दीन है। पूर्ण पुरुष की ये निशानी होती है कि उनके दरबार का लंगर चौबीस घन्टे चलता रहता है। और उनका दरबार अमीर गरीब छोटे बड़े सबके लिये खुला रहता है।  सभी मुरादें उनके दरबार से पूरी होती हैं। उनके दरबार में भी जो कोई आता उसकी मनोकामना पूरी करते। एक बार एक निर्धन व्यक्ति उनके चरणों में उपस्थित हुआ सिजदा करके उसने फरियाद की कि मैं गरीब आदमी हूँ। मैने लड़की की शादी करनी है। बड़े-बड़े सेठ-साहुकार राजा-महाराजा आपके शिष्य हैं, मुझे धन की आवश्यकता है, मुझे कुछ धन मिल जाये आपकी अति कृपा होगी। उन्होने फरमाया कि इस समय तो हमारे पास कोई सेठ साहुकार या राजा नहीं बैठा है। बाद में किसी से दिलवाने का वायदा हम करते नहीं क्योंकि हम किसी को कहें भी और वह दे न दे क्या भरोसा है इसलिये इस समय तो हमारे पास केवल ये हमारी चरणदासी है (जूती का जोड़ा) इस पर सोने का तिल्ला जड़ा हुआ है इसे बेच कर तुम्हारा काम चलता हो तो इसे बड़ी खुशी से ले जाओ और अपना कारज कर लो। परमात्मा भला करेगा। उस व्यक्ति ने सोचा जो मिलता है वही ठीक है इसीसे काम जो चलेगा चला लूँगा। महापुरुषों का आशीर्वाद साथ है। वह व्यक्ति उनकी चरणदासी लेकर अपने घर की तरफ चल दिया। रास्ते में रात पड़ी एक धर्मशाला में ठहर गया। दूसरी तरफ से अमीर खुसरो किसी रियासत को जीत कर चालीस खच्चरों पर सोना चाँदी और सामान लादकर दिल्ली आ रहे थे। रात पड़ने पर उसी धर्मशाला में अपने सैनिकों सहित पड़ाव किया जिस धर्मशाला में वह व्यक्ति भी ठहरा हुआ था। कुछ देर बाद अमीर खुसरो ने अपने एक सैनिक से कहा कि देखो इस धर्मशाला में और कौन ठहरा हुआ है। क्योंंकि हमें अपने प्यारे मुर्शिद की खुशबू आ रही है उस सैनिक ने जाकर पता लगाया, और उस व्यक्ति को साथ लेकर अमीर खुसरो के सामने ला खड़ा किया। अमीर खुसरो ने उस व्यक्ति से पूछा कि सच सच बताओ कि तुम कौन हो और ये चरणदासी कहां से लाये हो। उसने सब बात सच सच बता दी मुझे ये जूती का जोड़ा हज़रत निजामुद्दीन साहिब ने स्वयं अता फरमाया है। इसे बेचकर उस धन से अपनी लड़की का विवाह करूँगा। अमीर खुसरो ने कहा तुमने इसे बेचना ही है, ये मुझे दे दो, और ये चालीस खच्चर सोना चाँदी और सामान से लदे हुए सब के सब बड़ी खुशी ले जा सकते हो। उस व्यक्ति ने मन में सोचा किसी पागल से पाला पड़ गया है। जो इस जूती की इतनी भारी कीमत दे रहा है। उस बेचारे को क्या पता कि इसके बदले में अगर तीन लोक की सम्पदा भी देनी पड़े तो भी कम है। अमीर खुसरो ने वह सारे का सारा धन देकर चरणदासी ले ली अपने सीस पर धारण कर अपने सतगुरु के चरणों में उपस्थित होकर वह चरणदासी उन्हें भेंट कर दी। चरणदासी को देखकर उन्होने कहा, ""खुसरो ये तुम कहां से ले आये ये तो हमने एक व्यक्ति को दी थी कहीं उस बेचारे गरीब से छीन कर तो नहीं ले आये?'' अमीर खुसरो ने जवाब दिया, ""नहीं हुज़ूर! वह व्यक्ति इसे बेचना चाहता था और मैने इसे चलीस खच्चर सोना चाँदी और सारा सामान देकर लिया है, और मेरे पास कुछ था ही नहीं। और होता तो वह भी उसे दे देता। लेकिन वह उतने से ही सन्तुष्ट होकर गया है, और उसने मुझे यह चरणदासी खुशी से दी है। उसका उत्तर पाकर वे बड़े प्रसन्न हुए। उसकी श्रद्धा भक्ति देखकर गद्गद् हो गये, फरमाने लगे, ""खुसरो! बड़े ही सस्ते में खरी़द लाया है क्योंकि जो वस्तुयें मिट जाने वाली मृत्यु में छिन जाने वाली और नाशवान थीं उन वस्तुओं के बदले में तुझे सतगुरु का दुर्लभ और अनमोल प्यार प्राप्त हो गया है। इससे सस्ता सौदा और क्या हो सकता है? अमीर खुसरो को अपने सीने से लगाते हुये फरमाने लगे खुसरो आज से तुम अमीर खुसरो हुए। कीमती से कीमती अनमोल वस्तु परमात्मा के प्रेम और भक्ति की दौलत से मालामाल हुए। जो भी तुम्हारे इस प्रेम प्रसंग को पढ़ेगा सुनेगा और ह्मदय में धारण करेगा वह भी अपने सतगुरु के प्रेम के रंग मे रंग कर भक्ति के सच्च धन को पाकर मालामाल हो जायेगा और जीवन सफल बनायेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें