सोमवार, 6 जून 2016

राजकन्या ने सन्तोषी को वर चुना

राजकन्या ने सन्तोषी को वर चुना
          पहले  बनी  प्रारब्ध, पीछे  बना  शरीर ।।
          तुलसी ये आश्चरज है, मन नहीं बाँधे धीर।।
एक देश का राजा बड़ा ही भक्तिवान ईश्वर-विश्वासी था। उसकी एक कन्या सुन्दर व परम भक्तिमति थी। राजा ने निश्चय किया था कि ""मैं भगवान पर विश्वास रखने वाली इस कन्या को उसी को हाथों में सौपूँगा जो सच्चा वैरागी, त्यागी और अडिग प्रभु विश्वासी होगा।'' राजा खोज करते रहे, परन्तु ऐसा पुरुष उन्हें नहीं मिला। लड़की बीस साल की हो गई। एक दिन राजा को एक प्रसन्नमुखी त्यागी युवक मिला। उसके बदन पर कपड़ा नहीं थाऔर उसके पास कोई भी वस्तु नहीं थी। राजा ने उसे भगवान की मूर्ति के सामने बड़ी भक्तिभाव से ध्यानमग्न देखा। मन्दिर से निकलने पर राजा ने उससे पूछा-""तुम्हारा घर कहाँ है?''उसने कहा-"प्रभु जहाँ रखे।''राजा ने पूछा-""तुम्हारे पास कोई सामग्री है?''उसने कहा-"प्रभु कृपा मेरी सामग्री है।''राजा ने फिर पूछा-तुम्हारा काम कैसे चलता है?
उसने कहा-जैसे प्रभु चलाते हैं।उसकी बातों से राजा को निश्चय हो गया कि यह अवश्य ही प्रभु विश्वासी और वैराग्यवान है। मैं अपनी धर्मशील कन्या के लए वर खोजता था,आज ठीक वैसा ही प्रभु ने कृपा करके भेज दिया है।राजा ने बहुत आग्रह करके और अपनी कन्या के त्याग-वैराग्य की स्थिति बतलाकर उसे विवाह के लिए राज़ी किया। बड़ी सादगी से विवाह हो गया।राजकन्याअपने पति के साथ जंगल में एकपेड़ के नीचे पहुँची। वहां जाकर उसने देखा-वृक्ष के एक कोटर में जल के सकोरा पर सूखी रोटी का टुकड़ा रखा है। राजकन्या ने पूछा-स्वामिन्! ""यह रोटी यहां कैसे रखी है?'' नवयुवक ने कहा,""आज रात को खाने के काम आवेगी, इसलिए कल थोड़ी सी रोटी बचाकर रख दी थी।''
     राजकन्या रोने लगी और निराश होकर अपने महल में जाने को तैयार हो गई।इसपर नवयुवक ने कहा-""मैं तो पहले ही जानता था कि तू राजमहल में पली हुई,मेरे जैसे दरिद्री केसाथ नहीं रह सकेगी।''राजकन्या ने कहा-""स्वामिन्!मैं दरिद्रता के दुःखों से उदास नहीं जा रही हूँ।मुझे तो इस बात पर रोना आ रहा है कि आप में प्रभु के प्रति विश्वास की कमी इतनी है कि कल क्या खायेंगे। इस चिन्ता से रोटी का टुकड़ा बचाकर रखा है। मैं अब तक इसलिए कुंवारी रही थी कि मुझे कोई प्रभु का विश्वासी पति मिले। मेरे पिता ने बड़ी खोजबीन के साथ आपको चुना परन्तु मुझे बड़ा खेद है कि आपको तो एक रोटी के टुकड़े जितना भी भगवान पर विश्वास नहीं हैं।''
     पत्नी की बात सुनकर उसको अपने त्याग पर बड़ी लज्जा आई। उसने बड़े संकोच से कहा-""सचमुच मैने बड़ा पाप किया है। बता इसका क्या प्रायश्चित करूँ?''राजकन्या ने कहा-प्रायश्चित कुछ नहीं,मुझे रखिये या रोटी के टुकड़े को रखिये।नवयुवक कीआँखें खुल गर्इंऔर उसने रोटी का टुकड़ा फैंक दिया।

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