एक दिन पानी से भरे कलश पर रखी हुई कटोरी ने उससे कहा," कलश, तुम बड़े उदार
हो। तुम्हारे पास जो भी बर्तन आता है, उसे तुम पानी से भर देते हो, किसी को
खाली नहीं जाने देते।' कलश ने उत्तर दिया," हाँ, मैं अपने पास आने वाले
प्रत्येक पात्र को जल से भर देता हूँ, मेरे अंदर का सारा सार दूसरों के लिए
है।' कटोरी बोली," लेकिन मुझे कभी नहीं भरते, जबकि मैं हर समय तुम्हारे
सिर पर ही मौजूद रहती हूँ।' घड़े ने उत्तर दिया," इसमें मेरा कोई दोष नहीं,
दोष तुम्हारे अभिमान का है। तुम अभिमानपूर्वक मेरे सिर पर चढ़ी रहती हो,
जबकि अन्य पात्र मेरे पास आकर झुकते हैं और अपनी पात्रता सिद्ध करते हैं।
तुम भी अभिमान छोड़कर मेरे सिर से उतरकर विनम्र बनो, मैं तुम्हें भी भर
दूंगा।' पूर्णता की प्राप्ति, पात्रता एवं नम्रता से होती है, अभिमान एवं
अहंकार से नहीं।
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