रविवार, 17 जुलाई 2016

साधुता जीवनभर की गहरी उपलब्धि है


एक स्मरण मुझे आता है एक आश्रम में बहुत से भिक्षु थे, और एक आदमी ने आकर पूछा उस आश्रम के गुरु से, मुझे भी साधु होना है, तो उस आश्रम के गुरु ने कहा-"तुम्हें साधु दिखना है या साधु होना है? इन दोनों में फर्क है। उस गुरु ने कहा; अगर दिखना है तो बिलकुल आसान बात है, अगर होना है तो बहुत कठिन है। दिखना बिलकुल आसान है। अभी आप यहां बैठे हैं, आधी घड़ी भी नहीं लगेगी, आप साधु हो जाएंगे। कपड़े बदल लीजिए, सिर घुटा लीजिए, किसी का आशीर्वाद ले लीजिए, आप साधु हो गए। अभी आप दूसरों के पैर पड़ते थे, दूसरे आपके पैर पड़ने लगेंगे। आधी घड़ी में आप गृहस्थ थे, अब आप साधु हो गए। साधुता कोई मज़ाक नहीं है। जबकि साधुता जीवन भर की गहरी उपलब्धि है।
     अभी एक बहुत बड़े साधु ने मुझसे पूछा, आप साधु क्यों नहीं हो जाते? मैने कहा; साधुता कोई ऐसी बात है कि कोई चाहे तो हो जाए? साधुता तो विकसित होती है। ग्रोथ है। बहुत आहिस्ता-आहिस्ता मनुष्य के चित्त में परिवर्तन होता रहता है और एक बढ़ती होती है। उसे पता भी नहीं चलता कि कब क्या हो गया? कब दुनियां छूट गई और वह दूसरा आदमी हो गया। दूसरों को भला पता चल जाता हो, उसे पता भी नहीं चलता।
     आपको पता चला आप किस दिन जवान हुए? आपको पता चला आप किस दिन बूढ़े हुए? आपको बिलकुल पता नहीं चला, दूसरों ने आपको कहा होगा कि अब तो आप बूढ़े हो गए। लेकिन आपको पता चला था पहले कि आप बूढ़े हो गए। किस दिन बूढ़े हो गए? नहीं।

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