मंगलवार, 19 जुलाई 2016

औषधियों का असर

श्री परमहंस अद्वैत मत के महान प्रवर्तक श्री श्री 108 श्री परमहंस दयाल जी श्री स्वामी अद्वैतानन्द जी महाराज के श्री चरणों में एक बार रायसाहिब दीवान ईश्वरदास जी उपस्थित हुए। दीवान ईश्वरदास जी के छोटे भाई का श्रयरोग के कारण देहांत हो गया था। दीवान साहिब उसके विषय में चर्चा करने लगे और श्री चरणों में निवेदन किया- महाराज जी। मैंने कितने ही अच्छे-अच्छे हकीमो और वैधो को उसे दिखलाया। हजारो तरह की दवाईया दी गई। परन्तु कुछ भी लाभ ना हुआ क्या दवा आदि में कुछ भी असर नहीं होता? श्री परमहंस दयाल जी का प्राय: यह नियम था कि किसी भी विषय को अच्छी तरह समझाने के लिए कोई ना कोई प्रमाण दिया करते थे उस समय भी आपने ऐसा ही किया। श्री परमहंस दयाल जी ने फरमाया- हमें एक कहानी याद आई। एक हकीम साहिब दवा-दारु के विषय में अत्यंत प्रसिद्ध एव दक्ष थे। उनके हाथ में कुछ ऐसी शिफा थी कि जिस किसी का भी उपचार करते थे वह चाहे कैसा भी रोगी क्यों ना हो, ठीक हो जाता था। चिकित्सा शास्त्र की पुस्तकों से लदे सत्तर उँठ हमेशा उनके साथ रहते थे। एक बार वे कही जा रहे थे कि मार्ग में उन्हें एक विचित्र आकृति का व्यक्ति मिला। हकीम साहिब ने उनसे पूछा- तुम कौन हो और क्या करते हो। उसने उत्तर दिया- मैं मौत का फरिशता हूँ और लोगो के प्राण हरना मेरा काम है। हकीम साहिब ने पूछा- अब कहा जा रहे हो? उसने उत्तर दिया- आज अमुक व्यक्ति के प्राण लेने है। हकीम साहिब ने फिर पूछा- किस तरह से उसके प्राण लोगे? उसने कहा- उस व्यक्ति के पेट में ऐसा दर्द पैदा करूंगा जिससे वह अच्छा ना हो सकेगा और अंततः प्राण त्याग देगा। यह कहकर वह गायब हो गया। हकीम साहिब ने औषधियों का बक्सा संभाला और उस व्यक्ति के घर जा पहुंचे जिसके बारे में मौत के फ़रिश्ते ने बतलाया था। नियत समय पर जब उस व्यक्ति के पेट में दर्द प्रारभ हुआ। तो उस रोग की एक अच्रक औषधि उसे दी, परन्तु जब कोई लाभ ना हुआ तो फिर अन्य अनुभृत औषधिया आजमानी शुरू की। गोली, अर्क, चूरण, जोशांदा, माजून, अवलेह - सभी कुछ दिया, परन्तु कुछ असर ना हुआ, अपितु  दर्द बढता ही गया। अन्तत: दो तीन घंटे दर्द से तड़प-तड़पकर रोगी ने प्राण त्याग दिए। हकीम साहिब सोचने लगे कि जब मृत्यु अटल एवं अवश्य भावी है और कोई औषधि प्रभावकारी नहीं हो सकती, तो फिर हम उपचार किसका करे और ये पुस्तक तथा औषधिया लादे-लादे क्यों मारे-मारे फिरे? यह सोचा और सब सामान-पुस्तके तथा औषधिया आदि लेकर इस निश्चय के साथ नदी के किनारे पहुंचे कि सब सामान नदी में डुबो देंगे कि उसी समय वही विचित्र आकृति का व्यक्ति सामने आ उपस्थित हुआ और कहने लगा- हकीम साहिब। यह क्या धुन सवार हुई? हकीम साहिब ने उत्तर दिया- जब इन औषधियों से रोगी को कोई फायदा ही नहीं होता, न इनका प्रभाव रोगी पर होता है, तो फिर इनके रखने से क्या लाभ? क्यों ना इनको डूबो दिया जाये? मौत के फ़रिश्ते ने कहा- हकीम साहिब। ऐसी बात नहीं है कि इन औषधियों में असर न हो। परमात्मा ने जिस वस्तु में जो असर रखा है। वह वस्तु वह असर अवश्य प्रकट करती है। परन्तु उसी समय जिस समय उसे प्रकट करने का अवसर मिले। फिर जितनी औषधिया हकीम साहिब ने रोगी को दी थी, वे सब दिखाकर  के मौत के फ़रिश्ते ने कहा- जिस समय रोगी के गले से औषधि उतरती थी, मैं लेता जाता था उसे पेट में  जाने ही नहीं देता था। अब आप ही बताइये कि असर कैसे प्रकट होता? असर तो तब प्रकट होता, जब में औषधि पेट में जाने देता? और हकीम साहिब को समझा- बुझाकर उन्हें औषधिया तथा पुस्तके नदी में डुबोने से रोका।।
यह कथानक् सुनकर श्री परमहंस जी ने दीवान ईश्वरदास जी से फ़रमाया- दीवान साहिब प्रभाव तो हर वस्तु का होता है, परन्तु जब मौत का समय आ जाता है, तो फिर कोई औषधि प्रभावकारी सिद्ध नहीं होती। सब औषधिया प्रभावहीन हो जाती है।।

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