गुरुवार, 28 जुलाई 2016

साक्षी है ध्यान की आत्मा


यहूदी धर्म में विद्रोही साधकों की एक रहस्य-धारा है हसीद। इसके स्थापक बाल शेम एक दुर्लभ व्यक्ति थे। मध्य रात्रि को वे नदी से वापस लौटते। यह उनकी रोज़ की चर्या थी वे बस बैठते थे वहां-कुछ न करते। बस "स्व' को देखते हुए, द्रष्टा को देखते हुए। एक रात जब वे नदी से वापस आ रहे थे, तब वे एक धनी व्यक्ति के बंगले से गुज़रे और पहरेदार प्रवेशद्वार पर खड़ा था। पहरेदार उलझन में पड़ा हुआ था कि हर रात, ठीक इसी समय यह व्यक्ति वापस आ जाता था। पहरेदार आगे आया और बोला,"मुझे क्षमा करें आपको रोकने के लिए, लेकिन मैं अपनी उत्सुकता को और ज्यादा रोक नहीं सकता। तुम मुझ पर दिन-रात छाये हुए हो दिन-प्रतिदिन। तुम्हारा काम-धंधा क्या है? तुम नदी पर क्यों जाते हो? अनेक बार मैं तुम्हारे पीछे गया हूं, लेकिन वहां कुछ भी नहीं होता-तुम बस बैठे रहते हो घंटों, फिर आधी रात को तुम वापस आते हो।' बालशेम ने ंकहा, "मुझे पता है कि तुम कई बार मेरे पीछे आये हो, क्योंकि रात का सन्नाटा इतना है कि मैं तुम्हारे पदचाप की ध्वनि सुन सकता हूं, और मैं जानता हूँ कि हर रात तुम बंगले के द्वार के पीछ छिपे रहते हो, लेकिन केवल ऐसा ही नहीं है कि तुम मेरे बारे में उत्सुक हो, मैं भी तुम्हारे बारे में उत्सुक हूं,ं तुम्हारा काम क्या है?' पहरेदार बोला, "मेरा काम? मैं एक साधारण पहरेदार हूँ।' बालशेम ने कहा," हे परमात्मा, तुमने तो मुझे कुंजी जैसा शब्द दे दिया। मेरा धंधा भी तो यही है।' पहरेदार बोला, "लेकिन मैं नहीं समझा! यदि तुम पहरेदार हो तो तुम्हें किसी बंगले या महल की देख-रेख करनी चाहिए। तुम वहां क्या देखते हो नदी की रेत पर बैठे-बैठे?' बालशेम ने कहा, "हमारे बीच थोड़ा फर्क है। तुम देख रहे हो कि बाहर का कोई व्यक्ति महल के भीतर न घुस पाये, मैं बस इस देखने वाले को देखता रहता हूं, कौन है यह द्रष्टा?-यह मेरे पूरे जीवन की साधना है कि मैं स्वयं को देखता हूँ।'
     पहरेदार बोला, "लेकिन यह एक अजीब काम है। कौन तुम्हें वेतन देगा?' बालशेम ने कहा, "यह इतना आनंदपूर्ण आल्हादकारी परम धन्यता है कि यह स्वयं अपना पुरस्कार है। इसका एक क्षण-और सारे खज़ाने इसके सामने फीके हैं।' पहरेदार बोला, "यह अजीब बात है, मैं अपने पूरे जीवन निरीक्षण करता रहा हूं लेकिन मैं ऐसे किसी सुंदर अनुभव से परिचित नहीं हुआ हूँ। कल रात मैं आपके साथ आ रहा हूँ, मुझे इसमें दीक्षित करें। मुझे पता है कि कैसे निरीक्षण करना है आयाम की ज़रुरत है। आप शायद किसी दूसरे ही आयाम के द्रष्टा हैं।'
     केवल एक ही चरण है और वह चरण है एक नया आयाम, एक नई दिशा या तो हम बाहर देखने में रत हो सकते हैं और अपनी समग्र चेतना को भीतर केंद्रित कर सकते है, फिर तुम जान सकोगे, क्योंकि तुम "जानने वाले' हो, तुम चैतन्य हो, तुमने इसे कभी खोया नहीं है, तुमने अपनी चेतना को हज़ार बातों में उलझा भर रखा है, अपनी चेतना को सब तरफ से वापस लौटा लो और उसे स्वयं के भीतर विश्रामपूर्ण होने दो और तुम घर वापस आ गये हो।'

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